बुलबुल और गुलाब -2

The Nightingale and the Rose-2
"बुलबुल और गुलाब"-2

गतांक  से आगे...
(  3  )
    अब बुलबुल उस गुलाब के पौधे की ओर उड़ चली जो पुरानी सूर्य-घडी के निकट उगा हुआ था !

    "मुझे एक लाल गुलाब दे दो" वह चिल्लायी "और बदले में तुम्हारे लिए मैं अपना सबसे मधुर गीत गाऊँगी !"

    लेकिन पौधे ने अपना सर हिला दिया !

    "मेरे गुलाब पीले है" यह उत्तर था उसका ; "उतने ही पीताभ जितने कि गहरी पीली तृणमणि से बने प्राकृतिक सिंहासन पर बैठी किसी मत्स्य-कन्या के बाल हो सकते हैं ! उस कुमुद से भी ज्यादा पीले जो अपने हँसिये संग चरागाह में आयी उस घास काटने की मशीन के आने से पहले तक अपने यौवन से बौराया होता है ! परन्तु तुम मेरे भई के पास जाओ जो उस छात्र की खिडकी तले पनपा हुआ है , संभवतः उससे तुम्हें तुम्हारा वांछित मिल जाये !"

    अब बुलबुल उड़ कर छात्र के वातायन तले उगे गुलाब के पौधे तक पहुंची !

    "मुझे एक लाल गुलाब दो" वह गिडगिडाई ! "और बदले में मेरा सबसे मधुर गीत तुम्हारे लिए होगा !"

    परन्तु हर बार की तरह इसने भी अपने सर को दोनों तरफ नाच जाने दिया !

    उत्तर था : "हाँ , मेरे गुलाब लाल हैं , लाल जितने कि किसी पेंडुकी (कपोत) के पंजे , और सर्वोत्कृष्ट मूँगे के झाग से भी अधिक लाल जो परत दर परत गहराता जाता है किसी सामुद्रिक कन्दरा के मुहाने पर ! लेकिन शरद ऋतु ने मेरी शिराओं को जमा दिया है और तुषार कणों ने मेरी कलियों पर जम उन्हें ठिठुरा दिया है , साथ ही तूफान ने मेरी टहनियों को भी क्षतिग्रस्त कर दिया है और इस तरह पूरे वर्ष मैं एक भी गुलाब नहीं दे पाउँगा !"

    "मुझे एक ही सुर्ख गुलाब चाहिए" बुलबुल पुनः गिडगिडाई "सिर्फ एक लाल गुलाब ! क्या ऐसी कोई राह नहीं , जिससे मैं अपनी वाँछना पूरी कर सकूँ ?"

    "सिर्फ एक ही रास्ता है" पौधे ने प्रत्युत्तर में कहा ! "लेकिन यह भयावह होगा इसलिए यह बात तुम्हें कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हूँ !"

    "इसे कहो मुझ से" बुलबुल फडफडायी ! "मैं नहीं डरूँगी !"

    "यदि सच में तुम लाल गुलाब चाहती हो !" पौधे ने कहना जारी रखा "तुम्हें इसे चन्द्रमा की रौशनी में मधुर संगीत से उत्पन्न करना होगा , और इसे अपने ह्रदय-रक्त से अभिरंजित (रंगना) करना होगा ! अपने सीने को मेरे एक शूल (काँटे) पर रख कर तुम्हें मेरे लिए गाना होगा ! सारी रात , सुबह तक तुम्हें मेरे लिए गाना होगा , और जो काँटा है वह तुम्हारे सीने में गडा होना चाहिए , तुम्हारे जीवन दायिनी रक्त को मेरी शिराओं से प्रवाहाहित होकर मेरा हो जाना होगा !"
(  4  )
    "बहुत से भी बहुत ज्यादा कीमत तय की गयी थी एक गुलाब की - मृत्यु" रो पड़ी बुलबुल ! "जिंदगी सभी के लिए परम आत्मीय होती है ! उसके लिए यही सुखकर होता कि वह चुपचाप से अपनी हरी लकड़ी पर बैठ भानु (सूर्य) को स्वर्ण-रथ पर सवार आते-जाते निहारती और शशि (चंद्रमा) को उसके मौक्तिक-रथ पर अवलोकित करती ! कंटीले दरख़्त की महक कहीं रुचिकर है और नीले घंटियोंनुमा फूल कहीं आनंदायी हैं जो जंगल की घाटियों में छिपे कहीं बिखरे पड़े हैं , और फूलों की झाड़ी जो पहाड़ी पर खड़ी शेखी बघार रही है ! परन्तु अब भी प्रेम उसके लिए जीवन से अधिक महत्वशील था , किसी मासूम चिरैय्या के भोले ह्रदय और एक आदमी के ह्रदय के बीच कैसी तुलना ?"

    सो उसने अपने भूरे बादामी डैनों को फैलाया और असमान में तीर हो चली ! बागीचे पर छाया बन लहराती हुई वह उपवन के पार तक तैर गयी !

    युवा प्रेमी छात्र अभी तक वहीँ घास पर लेटा हुआ था , जहाँ उसने उसे छोड़ा था , और मोतियों के अंचल समान उसके खूबसूरत नयनों से अभी अश्रु बिंदुओं ने सूख कर नहीं दिखाया था !

    "खुश रहो" कराहती बुलबुल ने उच्चारित किया , "खुश रहो ; तुम्हें तुम्हारा सुर्ख लाल गुलाब मिल जाने वाला है ! मैं चाँद की रौशनी में अपने गीत से तुम्हारे लिए इसे बना दूँगी , और इसे रंजित करुँगी अपने स्वयं के ह्रदय का जीवन-रक्त देकर ! इस सब के बदले मैं तुमसे तुम्हारा सच्चा प्रेमी बने रहना माँगती हूँ , उस प्रेम के लिए जो दर्शनशास्त्र से कहीं गंभीर है अगरचे वह गंभीर हो , और जो शक्ति एवं पराक्रम से ज्यादा आकर्षक है गोया कि वह आकर्षक हो ! लपटों के रंग जैसे उसके पंख हैं और उसका शरीर लपट वाले रंग जैसा है ! उसके (लड़के के) ओठ मधुर हैं जैसे शहद , और उसकी साँसें निष्कपट सुगंधि से महकती हों !"

    लड़के ने घास की ओर तकते हुए सिर झुका कर सारी बात सुनी , लेकिन वह समझ नहीं पाया जो कुछ भी बुलबुल ने उससे कहा , उसके लिए तो प्रेम सम्बंधित बातें उतनी ही थीं जो उसने पुस्तकों में लिखी देखी थीं !

    परन्तु बलूत के मजबूत दरख़्त ने उसे समझा , और खिन्न एवं दुखित महसूस किया , उसके लिए नन्ही बुलबुल वह चिड़िया थी जिसने उसकी डालियों पर घौंसला बना उसे आबाद किया था !

    "मेरे लिए एक आखिरी गीत गा दो , ऐ नन्ही चिड़िया" , वह हौले से फुसफुसाया ; "मैं बेहद अकेला महसूस करूँगा जब चली जाओगी !"

    इसलिए बुलबुल ने बलूत के लिए गया , और तब उसकी आवाज़ ऐसी थी जैसे किसी रजत जल-पात्र में बन रहे बुलबुलों की होती है !
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To be continue ... क्रमशः ... Part 3 के लिए...!!

भाग-1 ▬● http://indotrans1.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
भाग-3 ▬●
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लेखक     : Oscar Wilde
अनुवादक : जोगेन्द्र सिंह (02 फरवरी 2011)
कृति       : The Nightingale and the Rose "बुलबुल और गुलाब"
अनुवाद    : English to Hindi

Note :- Dr. Dharmveer Bharti ने बहुत पहले “ऑस्कर वाईल्ड” की कहानियों का हिंदी में अनुवाद किया था... "Oscar Wilde" की लिखी उन्ही कहानियों में से एक "The Nightingale and the Rose" का कुछ भागों में अनुवाद मैंने भी किया है... दिल को छू जाने वाली इस कहानी के अनुवाद में मेरी पूरी कोशिश रही है कि मूल रचना के स्तर को गिराए बगैर अनुवादित रचना को एक बेहतर और आसान से साहित्यिक अंदाज़ में पुनः लिख कर प्रस्तुत करूँ... किस स्तर को छू पाया यह तो इसे पढ़ने वाले ही तय कर पाएँगे तदपि मुझे उम्मीद है कि जितना भी प्रबुद्ध पाठक की हैसियत से आपने सोच रखा है यह उससे बेहतर ही मिलेगी...

जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh +91- 90040 44110


The real link for the source story is given here :-
http://www.eastoftheweb.com/short-stories/UBooks/NigRos.shtml#top
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बुलबुल और गुलाब -1


The Nightingale and the Rose
"बुलबुल और गुलाब"

( 1 )

   "उसने कहा वह मेरे साथ नृत्य करेगी यदि उसके लिए मैं एक लाल गुलाब ले आऊँ ! परन्तु मेरे बगीचे में एक भी लाल गुलाब नहीं है" यह कहते हुए युवा छात्र रोने लगा !

    बगल के बलूत के दरख़्त पर अपने घौसले में बैठी बुलबुल ने उसे रोते सुना और पत्तियों की तरफ देख वह आश्चर्यचकित हो उठी !

    वह रो रहा था "मेरे पूरे बगीचे में लाल गुलाब नहीं है" और उसकी खूबसूरत आँखों के प्याले आँसुओं के मोतियों से भर उठे ! "आह, क्या अदना सी चीज़ पर खुशियाँ टिकी हुई हैं ! जबकि ज्ञानी पुरुषों की सारी लेखनी पढ़ रखी है , और दर्शन-शास्त्र के सारे रहस्य भी अब मेरे हैं , तदापि एक अदने से लाल गुलाब की चाहना ने मेरा जीवन नारकीय बना रखा है !"

     "कम से कम यहाँ एक सच्चा प्रेमी तो है !" बुलबुल कह उठी "रात दर रात उसके लिए मैंने गया है , जबकि क्या उसे मैं नहीं जानती हूँ ? रात दर रात मैंने उसकी कहानी तारों को सुनाई है , और अब मैन उसे देख रही हूँ ! उसके बाल जैसे लाल गुलाबी पारदर्शी पुष्प के सामान हैं , और ओंठ उसके जैसे लाल सुर्ख गुलाब , ठीक वैसे ही जैसी कि उसकी कामना है , परन्तु चेहरा जैसे कुम्हलाया हुआ कांतिहीन गजदंत सा पीलाभ-धवल-अधीर , और दुःख / संताप की स्पष्ट छाप ललाट शिखर पर छपी हुई !"

    "आने वाले कल की रात राजकुमार द्वारा बाल नृत्य (एक प्रकार का अंग्रेजी नृत्य) आयोजित किया गया है !" युवा छात्र के मुख से मर्मर सी ध्वनि प्रस्फुटित हुई , "और मेरा प्रेम भी वहाँ अवतरित होगा ! यदि मैं उसे एक लाल गुलाब ला देता हूँ तब तडके पौ फटने तक वह मेरे साथ नृत्य में लीन रहने वाली है ! काश अगर कि मैं उसे सुर्ख गुलाब ला देता हूँ तो मैं उसे अपनी दोनों बाँहों में भर सकूंगा , और वह मेरे काँधों पर अपना सर झुकाए होगी , और उसके हाथ मेरे हाथों जकड़े होंगे ! लेकिन वहाँ कोई सुर्ख गुलाब नहीं है मेरे बागीचे में , इसलिए अपने साथ मुझे अकेले ही बैठना होगा , और वह विदा कहती हुई मेरे करीब से गुज़र जायेगी ! मेरी ओर उसका ध्यान तक न होगा , और मेरा मासूम ह्रदय चकनाचूर हो जायेगा !"

    "निश्चय ही वह सच्चा प्रेमी है" , बुलबुल ने कहा ! "उसके कष्ट पाने पर मैं क्या गाऊँ ? क्या यह मेरे लिए आनंदायी होगा जबकि वह दर्द में है ? निश्चित ही प्रेम निराली वस्तु है ! यह (प्रेम) हरित मणि ( पन्ना ) से कहीं अधिक महत्वशील और चिकने दूधिया पत्थर से कहीं अज़ीज़ है ! मोती एवं अनार भी इसे खरीद नहीं सकते , ना ही इसे हाट-बाज़ारों में ही रखा जा सकता है ! इसे किसी वणिक वीथी से ख़रीदा भी नहीं जा सकता अथवा इसकी तुलना किसी स्वर्ण तक से नहीं की जा सकती है !"

( 2 )

    "वाध्य-यंत्र-वादक गलियारे में अपनी जगहें लेते चले जायेंगे" , युवा छात्र ने आगे कहा , "वे अपने यंत्रों के तंतुओं को छेड़ना शुरू कर करेंगे , और मेरी प्रेयसी वायलिन एवं हार्प (विदेशी बाजा) की धुन पर तल्लीन होकर नृत्य करने लगेगी ! वह इतनी कोमलता से नृत्य करेगी कि उसके पाद भूमि को छुएंगे तक नहीं , और सारे दरबारी अपनी चटकीली वेशभूषाओं में उसके चारों ओर मंडरा रहे होंगे ! लेकिन मेरे साथ उसे नहीं नाचना था क्योंकि उसे देने के लिए लाल गुलाब जो न था मेरे पास !" इतना कह कह उसने स्वयं को बेदर्दी से घास पर नीचे गिर जाने दिया और अपना मलिन चेहरा हाथों में लेकर जार-जार होकर रोने लगा !

    हरे गिरगिट ने पूछा "तुम क्यों रो रहे हो ?" जबकि उसकी पूँछ उसके पीछे आकाश की ओर लहराए जा रही थी !

    "वाकई , क्यों ?" सूर्य किरण के गिर्द मंडराती एक तितली ने पूछा !

    "सचमुच , क्यों ?" गुलबहार का पुष्प मद्धिम निम्न स्वर में अपने पडौसी से फुसफुसाया !

    "वह एक लाल गुलाब के लिए रो रहा है" कहा बुलबुल ने !

    "मात्र एक लाल गुलाब के लिए !!" वे सारे चिल्लाये ! "कितना अधिक बेहूदा है यह रोना !" और नन्हा गिरगिट जोकि किसी कुटिल चिडचिडे निंदक मनुष्य की भांति था , ठठा कर हँस पड़ा !

    परन्तु बुलबुल उसके संताप का भेद जन चुकी थी और उसने अपने बलूत के वृक्ष पर शांति आरोपित हो जाने दी , उसने अपना गीत बंद कर दिया और सोचने लगी उस गूढ़ प्रेम के विषय में !

    अचानक उसने अपने साँवले बादामी परों को उड़ने के लिए फैलाया , और असमान में बहुत ऊँचे को उड़ चली ! झुरमुटे पर से वह एक छाया के सामान आगे की ओर को बढ़ गयी , और छाया ही की तरह समूचे उपवन को पार कर गयी !

    घास के मैदान के बीचो-बीच एक खूबसूरत गुलाब की झाड़ी खड़ी थी ! जब उसने इसे देखा , वह इसकी ओर उड़ गयी , और इस पर अपनी फुहार सी चमकायी !

    "मुझे एक लाल गुलाब दो" वह गिडगिडायी , "बदले में तुम्हारे लिए मैं अपना सबसे मीठा गीत समर्पित करुँगी!"

    लेकिन झाड़ी ने अपना सिर हिला दिया !

    "मेरा गुलाब सफ़ेद हैं" उसने प्रत्युत्तर दिया ; "उतना ही सफ़ेद जितना कि समंदर का झाग होता है , और यह पहाड की चोटियों पर पड़ी बर्फ से भी ज्यादा सफ़ेद है ! पर तुम मेरे भाई के पास जाओ जोकि पुरानी सूर्य-घडी के निकट उगा हुआ है , संभवतः वह तुम्हें अवश्य ही वह दे देगा जो तुम चाहती हो !"

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To be continue ... क्रमशः ... Part 2 & 3 के लिए...!!

भाग-2 ▬● http://indotrans1.blogspot.com/2011/02/2.html
भाग-3 ▬●
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● लेखक     : Oscar Wilde
● अनुवादक : जोगेन्द्र सिंह (02 फरवरी 2011) +91- 90040 44110
● कृति       : The Nightingale and the Rose "बुलबुल और गुलाब"
● अनुवाद    : English to Hindi

● Note :-
● Dr. Dharmveer Bharti ने बहुत पहले “ऑस्कर वाईल्ड” की कहानियों का हिंदी में अनुवाद किया था...
● "Oscar Wilde" की लिखी उन्ही कहानियों में से एक "The Nightingale and the Rose" का कुछ भागों में अनुवाद मैंने भी किया है...
● दिल को छू जाने वाली इस कहानी के अनुवाद में मेरी पूरी कोशिश रही है कि मूल रचना के स्तर को गिराए बगैर अनुवादित रचना को एक बेहतर और आसान से साहित्यिक अंदाज़ में पुनः लिख कर प्रस्तुत करूँ...
किस स्तर को छू पाया यह तो इसे पढ़ने वाले ही तय कर पाएँगे तदपि मुझे उम्मीद है कि जितना भी प्रबुद्ध पाठक की हैसियत से आपने सोच रखा है यह उससे बेहतर ही मिलेगी...

●  जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh +91- 90040 44110


The real link for the source story is given here :-
http://www.eastoftheweb.com/short-stories/UBooks/NigRos.shtml#top
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