स्वार्थी दैत्य : The Selfish Giant


स्वार्थी दैत्य : The Selfish Giant 
(Oscar Wilde 1854-1900) Translator : Jogendra Singh (08-04-2011)

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हर दोपहर स्कूल से आने के पश्चात छोटे बच्चे विशाल दैत्य के बगीचे में खेला करते थे !

नरम हरी घास के साथ यह एक बड़ा सुंदर प्यारा बगीचा था ! घास पर यहाँ वहाँ खूबसूरत फूल गगन में चमकते सितारों की तरह खड़े थे ! वहीं बारह आडू के दरख़्त खड़े थे, वसंत काल में जिनके गुलाबी और मौक्तिक (मोती) से नाज़ुक पुष्प फूटने लग पड़ते थे, और शरद ऋतु में जिनके फलों के बौर पकने लगते थे ! इसकी शाखाओं पर बैठ चिरैया का गाया गीत इतना मधुर होता था कि उसे सुनने के लिए बच्चे अकसर अपना खेल रोक दिया करते थे ! आपस में जोश के साथ बतियाते  "कितना अच्छा लगता है ना यहाँ !"

एक दिन दैत्य वापस आ गया ! वह अपने राक्षस मित्र कोर्निश के पास रहने गया हुआ था और पिछले सात बरसों से अपने उसी मित्र के पास था ! सात वर्षों की समाप्ति पर उसने उससे सब बातें की ! उसकी बातचीत सीमित थी और तब उसने अपने महल लौट जाने का निश्चय कर लिया ! वापस आने पर वह क्या देखता है कि बच्चे उसके बगीचे में खेलने में मशगूल हैं !

"तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो" वह बड़ी कर्कश आवाज में चिल्लाया और बच्चे डरकर भाग गये !

"ये बगीचे मेरे अपने हैं" दैत्य बोला ! "इस बात को कोई भी समझ सकता है, और मैं अपने सिवा को भी यहाँ खेलने की अनुमति नहीं दूँगा !" अतः उसने बगीचे के चारों ओर एक ऊँची दीवार बनायीं और तख्ती पर लिखकर सूचना टांग दी !

"अनाधिकृत प्रविष्ट होने वालों पर मुकदमा चलाया जाएगा !"

वह एक बहुत ही स्वार्थी दैत्य था !

बेचारे गरीब बच्चों के पास खेलने के लिए अब कोई स्थान नहीं था ! उन्होंने सड़क पर खेलने की कोशिश की परन्तु सड़क कठोर पत्थरों एवं धूल से भरी हुई थी और वे इसे पसंद नहीं कर पाए ! अपनी कक्षाओं के पश्चात उस ऊँची दीवार के गिर्द भटकते और भीतर के खूबसूरत बगीचे के बारे में चर्चायें करते रहते थे !  एक दूसरे से वे कहते "वहाँ कितने खुश थे हम सब !"

फिर वसंत आया और यहाँ-वहाँ पूरे देश में छोटी चिडियाएँ थीं और नन्हे-2 फूल खिल उठे ! केवल स्वार्थी दैत्य के बगीचे में अब तक सर्दी का ही मौसम था ! चिड़ियों ने वहाँ गाना नहीं चाहा कि वहाँ कोई बच्चा नहीं था और पेड फूल खिलाना भूल गए ! एक बार एक खूबसूरत फूल ने घास के बीच से अपना सर निकाला, लेकिन जैसे ही उसने नोटिस बोर्ड को देखा उसे बच्चों के लिए बेहद दुख हुआ, और अपना निकला सर उसने फिर से घास में सरका लिया ! और जो खुश थे, वे थे हिमपात और तुषार (ओस) ! वे चिल्लाये "वसंत अवश्य इस बगीचे को भूल गया है ! इसलिए हम यहाँ पूरे वर्ष भर रहेंगे !" हिमपात ने अपने महान लबादे से घास को ढँक लिया, और ओस ने सभी पेड़ों को चांदी से पोत दिया ! उन्होंने उत्तरी हवा को भी आमंत्रित कर लिया, और वह आ गयी ! फरों से लिपटकर वह आयी और सारे दिन बगीचे में गरजती फिरी ! उसने चिमनी के बर्तन को उड़ा कर नीचे गिरा दिया ! "यह एक रमणीय स्थल है, "उसने कहा, "हमें ओलावृष्टि को भी बुला लेना चाहिए !" अतएव ओलावृष्टि भी आ गया ! हर दिन तीन-3 घंटों तक उद्विग्न होकर महल की छतों की पत्थर की पट्टियां पर बरसते हुए उनमें से अधिकतर को उसने तोड़ डाला ! उसके बाद वह पूरे बगीचे में जितनी तेजी से संभव हुआ उतनी तेजी से गोल-2 भागने लगा ! वह धूसर रंग (ग्रे) से सजा था और उसकी साँसें बर्फ की तरह ठंडी थीं !

"मैं समझ नहीं पा रहा हूँ, इस बार वसंत के आने में इतनी देरी क्यों हो रही है ?" स्वार्थी दैत्य ने सोचा ! वह खिडकी में बैठा बाहर अपने ठन्डे सफ़ेद बगीचे को देख रहा था ! "मुझे आशा है जल्द ही इस मौसम में परिवर्तन आयेगा !"

लेकिन वसंत कभी नहीं आया, ना ही गर्मी आयी ! शरद ऋतु ने हर बगीचे में सुनहरा फल दिया, परन्तु दैत्य के बगीचे में उसने कुछ नहीं दिया ! "वह बहुत अधिक स्वार्थी है" ऐसा शरद ने कहा ! अतएव वहाँ हमेशा सर्दी थी ! उत्तरी हवा, ओलावृष्टि, तुषार (ओस) और हिमपात पेड़ों को माध्यम बना नृत्य करने लगे !

एक सुबह दैत्य के कानों में मधुर संगीत पड़ा तो वह अपने बिस्तर में नींद से जाग पड़ा !

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यह इतना ही कर्ण प्रिय था कि उसने सोचा ज़रूर यहाँ से राजा के संगीतकार निकल रहे होंगे ! वास्तव में यह केवल एक लिनेट पक्षी था जो खिडकी के बाहर गा रहा था ! लेकिन ऐसा बहुत समय के बाद था जबकि अपने बगीचे में उसने किसी चिड़िया को गाते सुना, इसलिए यह उसे संसार का सबसे मधुरतम संगीत लगा ! तब ओलावृष्टि ने उसके सर पर नाचना बंद कर दिया, और उत्तरी हवा ने भी अपनी गर्ज़न रोक दी, और एक मनभावन खुशबु का झौंका खुली खिडकी के माध्यम से उस तक आया ! "मेरा मानना ​​है कि वसंत पिछले द्वार पर आ गया है " दैत्य बोला साथ ही वह बिस्तर से कूदा और बाहर देखने लगा !

वह बाहर क्या देखता है ?

उसने देखा एक सबसे अद्भुत दृश्य ! बगीचे की दीवार में बने एक छोटे से छेद से रेंगकर भीतर आये छोटे बच्चे पेड की शाखों पर बैठे हुए हैं ! बच्चों को वापस आया पाकर पेड बेहद प्रफुल्लित हैं और इस वजह से उन्होंने स्वयं को फूलों से ढाँप लिया है ! और अपनी बाँहें (टहनियाँ) बच्चों के सिरों पर कोमलता से लहरा रहे हैं ! चिडियाएँ खुशी के मारे चहचहाती हुई यहाँ-वहाँ उडती फिर रही थीं और घास में से सर निकालकर छोटे फूल ऊपर देखते हुए हँस रहे थे ! यह समूचा नयनाभिराम (आँखों को भा जाने वाला) परिदृश्य बड़ा खूबसूरत था ! केवल एक कौने में शरद ऋतु अब भी वहाँ मौजूद थी ! यह उद्यान के सुदूर कोने में था, और इसमें एक छोटा लड़का खड़ा था ! वह इतना छोटा था कि पेड की शाखाओं तक नहीं पहुँच पा रहा था और वह इसके चारों ओर मंडराता फिर रहा था और धाड़ें मारकर रो रहा था ! बेचारा पेड अब भी ठंडी ओस और बर्फ़बारी से घिरा हुआ था और इसके ऊपर उत्तरी हवाएँ गरजती हुई बह रही थीं ! "ऊपर चढो ! छोटे लड़के" पेड ने कहा, साथ ही अपनी शाखाओं को जितना संभव हुआ उतना नीचे की ओर झुका दिया, लेकिन लड़का बहुत छोटा था !

इसे देख दैत्य का ह्रदय पिघल गया ! "इतना स्वार्थी कैसे हो गया मैं" उसने कहा; "अब मैं जान गया हूँ, अभी तक वसंत क्यों नहीं आया था ! मैं उस गरीब बच्चे को पेड के शीर्ष पर बिठाऊँगा, और फिर दीवार गिरा दूँगा और मेरा बगीचा हमेशा-2 के लिए बच्चों के खेलने का मैदान बन जायेगा !" अब तक जो कुछ कर चुका था उसके लिए उसे वास्तव में बड़ा खेद महसूस हो रहा था !

इसलिए उसने दबे पाँव सीढियों से नीचे उतरकर काफी धीरे से दरवाज़ा खोला और बगीचे में गया ! लेकिन जब बच्चों ने उसे देखा तो चूँकि वे उससे अत्यधिक भयभीत थे अतः सारे दूर भाग गए और फिर से बगीचे में सर्दी व्याप्त हो गयी ! केवल छोटा लड़का नहीं भगा क्योंकि उसकी आँखें आँसुओं से इतनी तर थीं कि उसे आता हुआ भीमकाय दैत्य दिखायी ही नहीं दिया ! दैत्य आकर उसके पीछे खड़ा हो गया और उसने बच्चे को कोमलता से अपने हाथों में उठाकर ऊपर पेड पर बिठा दिया और इसके साथ ही पेड पर एक ही बार में बौर (फूलों का खिलना) छा गया, और चिड़िया ने इस पर आकर अपना गाना शुरू कर दिया ! और छोटे बालक ने अपनी दोनों बांहों को फैलाकर दैत्य के गले को उनमें भर लिया और उसे चूम लिया ! जब अन्य बच्चों ने देखा कि दैत्य अब दुष्ट नहीं रहा तो वे भी वापस लौट आये और उनके साथ ही वसंत भी लौट आया ! "छोटे बच्चों, अब यह तुम्हारा बगीचा है" दैत्य ने कहा, और इसी के साथ उसने एक विशालकाय कुल्हाड़ी लेकर दीवार को नीचे गिरा दिया ! दोपहर को लोग बारह बजे जब बाज़ार को जाने लगे तो उन्होंने बच्चों के साथ दैत्य को सबसे सुन्दर बगीचे में खेलते पाया ! ऐसा सुन्दर बगीचा जोकि उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था !

बच्चे सारे दिन खेले, और शाम को वे दैत्य के पास उसे अलविदा कहने आये !

दैत्य : "लेकिन तुम्हारा छोटा साथी कहाँ है ? वह बच्चा जिसे मैंने पेड पर बिठाया था !" दैत्य को वह सबसे अधिक प्यारा था कि उसने उसे चूमा था !

"हम नहीं जानते" बच्चों ने ज़वाब दिया ! "वह कहीं दूर चला गया है !"

"तुम लोग कल यहाँ आने के लिए निश्चित ही उसे बताना और खेलने के लिए कल फिर आओ" दैत्य ने कहा ! लेकिन बच्चों ने कहा वे नहीं जानते कि वह कहाँ रहता है, और उससे पहले उसे कभी देखा भी नहीं था ! यह सुनकर दैत्य बहुत उदास हो गया !

< 3 >

हर दोपहर, जब स्कूल से छुट्टी होती तब सारे बच्चे आकर दैत्य के साथ खेलते ! परन्तु छोटा बच्चा जिसे दैत्य ने चाहा था, कभी नज़र नहीं आया ! दैत्य सभी बच्चों के लिए बहुत दयालु था मगर अब भी बड़ी लालसा के साथ उसे अपने पहले छोटे दोस्त का इंतज़ार था, और अकसर उसके बारे में बात करता था ! "कैसे उसे मैं देख पाउँगा" ऐसा वह कहा करता !

सालों बीत गये ! दैत्य काफी बूढा और कमजोर हो चुका था ! अब वह और अधिक नहीं खेल सकता था, इसलिए अपनी आरामकुर्सी पर बैठ कर बच्चों को खेलते हुए देखता और आपने बगीचे की प्रसंशा किया करता ! "मेरे पास बहुत से खूबसूरत फूल हैं" वह कहता ! "लेकिन सबसे अधिक सुन्दर फूल बच्चे हैं !"

सर्दियों की एक सुबह तैयार होकर उसने अपनी खिड़की से बाहर देखा ! अब उसे सर्दी से नफरत नहीं थी, उसे पता था कि वसंत के लिए यह महज़ एक नींद है और यह कि अभी फूल आराम कर रहे हैं !

एक सुबह वह अपनी खिडकी के पास खड़ा बाहर देख रहा था कि अचानक उसने आश्चर्य से अपनी आँखें मलीं और सामने देखा, फिर देखता ही रह गया ! यह निश्चित रूप से एक अद्भुत दृश्य था ! उद्यान के सुदूरवर्ती कोने में एक पेड बहुत सुन्दर सफ़ेद फूलों से ढंका हुआ था ! इसकी सभी शाखाएँ सुनहरी और उन पर चाँदी के फल लटक रहे थे, और इसके नीचे खड़ा था वह छोटा लड़का, जिसने उसे प्यार किया था !

बेहद खुश दैत्य सीढियों से नीचे भागा और बाहर बगीचे में निकल गया ! तेजी से उसने घास का मैदान पार किया, और बच्चे के पास आया ! जैसे ही वह बिलकुल करीब आया उसका चेहरा गुस्से से लाल भभूका हो गया, और वह बोला : "किसने तुम्हें घाव देने की हिम्मत की ?" बच्चे के हाथों की हथेलियों पर नाखूनों के दो निशान थे, और दो नाखूनों के निशान उसके छोटे से पाँवों पर थे !

"किसने हिम्मत की, तुम्हें घाव देने की ?" दैत्य चिल्लाया, "मुझे बताओ, मैं एक बड़ी तलवार से उसे मार डालूँगा !"

"नहीं !" बच्चे ने उत्तर दिया,"लेकिन ये प्यार के घाव हैं !"

"तू कौन है ?" दैत्य ने पूछा, इसके साथ ही जाने क्यों उस पर एक भय सा व्याप्त हो गया, और वह छोटे बच्चे के सामने घुटनों के बल बैठ गया !

बच्चा दैत्य की तरफ देख हौले से मुस्कुराया और कहने लगा : "तुमने एक दिन मुझे अपने बगीचे में खिलाया था, आज तुम्हें मेरे साथ मेरे बगीचे में चलना चाहिए, जोकि स्वर्ग है !"

और तब, जब दोपहर को बच्चे बगीचे की तरफ भाग कर आये, पेड के नीचे उन्होंने दैत्य को मरा हुआ पाया, जिसे सफ़ेद फूलों की चादर ने ढाँप रखा था ! और ऊपर स्वर्ग से झाँकता दैत्य मंद-मंद मुस्कुरा रहा था !

< The End >
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Story : The Selfish Giant (Oscar Wilde 1854-1900)
Source : http://www.wilde-online.info/the-selfish-giant.html
Oscar Wilde - playwright, novelist, poet, critic
Born: October 16, 1854
Birthplace: Dublin, Ireland
Died: November 30, 1900 in Paris, France (cerebral meningitis)
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हम कहाँ हैं ? : ( संस्मरण )


हम कहाँ हैं ? : ( संस्मरण )Copyright © 2009-2011

नोट : नीचे मौजूद वक्तव्य मेरी अपनी आँखों देखी सच्ची घटना है जो कुछ साल पहले घटित हुई थी...
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●          रात के अँधेरों में बरसात का जोर चरम पर था ! बारह बजकर पन्द्रह मिनट पर दादर कबूतरखाने के पर बने बस स्टॉप की शेड तले अपने को छिपाने के उद्देश्य से भाग कर मैंने अपनी जगह पक्की की ! पूछने पर पता चला सेंचुरी बाज़ार, वर्ली के लिए आखिरी बस एक बजकर पैंतालीस मिनट के आस-पास मिलेगी ! कुछ मिनट बीत जाने पर बारिश का जोर धीमा पड़ा और चारों तरफ से आ रही फुहारों से कुछ रहत मिली ! पीछे राम-हनुमान मंदिर से जुड़े नुक्कड़ पर पान के केबिन से देवानंद का एक गीत "ये रात ये चाँदनी फिर कहाँ, सुन जा दिल की दास्ताँ.." अपने मद्धिम स्वर में आयद हो रहा था ! मुंबई में बारिश का मौसम सबसे कठिन है कि यहाँ एक बार ठीक से जो बारिस शुरू हुई तो कम से कम चार माह तक अपने होने का अहसास करवाती रहती है ! उस पर भी यहाँ के लोगों का जीवट देखिये इस झंझावात के भी आदी हो चुकते हैं ! कहते हैं खरबूजे को देख खरबूजा रंग बदलता है तो हम ही कौनसे छूट जाने वाले थे, परिणामस्वरूप इतनी रात गए औरों संग मैं भी वहीं उस छोटी सी दबती सिमटती भीड़ का हिस्सा बना खड़ा था !

●          रात में सड़क को खाली जान सामने से अचानक एक नयी उमर के लड़के ने तेज़ी से सड़क पार करने की कोशिश में दौड लगा दी ! परन्तु नसीब का मारा यह नहीं देख पाया कि अन्य दिशा से उसी खालीपन का फायदा उठाती एक टैक्सी भी अपने वेग से चली आ रही थी ! समय की मार कहिये या दुखद संयोग परन्तु इन दोनों के मिलन का होना तय हो गया था ! धडाsssक.....!! जोर की आवाज़ ने कानों पर प्रहार किया ! लेकिन यह क्या, एक साथ तीन-२ आवाजें...? दरअसल टकराते ही उछलकर लड़का कार के बोनट पर जा गिरा और फिर उसी झौंक में दरककर नीचे जमीन पर ! एक ही समय तीन चोट और चौथी चोट ने बेचारे का तिया पाँचा ही कर डाला ! जब वह नीचे सड़क पर पहुंचा तो कार का अगला पहिया उसके बांये पाँव की हड्डी से खेल चुका था ! गीली फिसलन भरी सड़क पर रक्त के गहरे रंग की एक धार बह निकली जिसने कुछ ही समय में पहले से मौजूद गीलेपन से गठजोड़ कर नया फैलाव ले किया और यह दायरा फ़ैलकर अब काफी बड़ा रूप धारण कर चुका था !

●          रात के सन्नाटे को भंग करती बूंदों के अविरल टप-टप गिरने की की ध्वनियाँ जिन्हें बंद दुकानं के छज्जों पर मौजूद तिरपाल के संगम ने बेहद भयानक सा रूप दे दिया था ! इधर हम सब अवाक्...! सब इतना जल्दी हुआ कि क्या कहूँ ! मैंने कार के निकल भागने से पहले ही उसका नंबर नोट कर लिया और लगभग भागते हुए उस युवा के जमीन पर पड़े शरीर के पास जा पहुंचा जो अब झटके खाने लगा था ! एक पल को लगा कि उसका काम हो लिया, परन्तु फिर आस छोडना भी बेहूदगी होती ! इसी बीच पुलिस की बड़ी वैन वहाँ आ निकली ! जहाँ एक ओर बाकी लोग गलबतियों में व्यस्त थे वहीं मैंने अपना हाथ दे वैन को रुकने का इशारा दिया ! ज्यादा नहीं केवल एक ड्राईवर ही था उसमें, और नालायक इतना कि रुकने के बजाय सीधे ही पतली गली को हो लिया ! थोड़ी सी देर में दूसरी बार मेरे अवाक् रह जाने की बारी थी, जिस स्थिति में था उसी में मुँह फाड़े खड़ा रह गया ! कैसे एक सरकारी आदमी वह भी पुलिस डिपार्टमेंट का आदमी अपनी पूरी खाली वैन लेकर कल्टी हो लिया ! जिनके कन्धों पर देश की आतंरिक व्यवस्था टिकी हुई हो उससे ऐसी उम्मीद नहीं कर पाया था सो अचंभित होना स्वाभाविक ही था ! कुछ ही मिनटों में यह सब भी निबट गया ! अब फिर सुनी सड़क मुझे मुँह चिढाती अपने नहाने-ढोने के काम में व्यस्त हो गयी ! आस-पास नज़रें एवं दिमाग दौडाने पर समझ आया कि अब तक मैं जिन्हें अपने साथ समझ रहा था उनकी हैसियत असल में किन्हीं तमाशबीनों से अधिक नहीं थी !

● उन्हीं तमाशबीनों में एक से पुलिस कंट्रोल रूम का नंबर मिल गया ! फोन घुमाने पर जो हुआ वह पहले से भी अधिक परेशानीबख्श रहा ! फोन पर उपलब्ध लोगों ने लड़के के बारे में जानना ना चाहकर मेरी ही जन्मकुंडली निकलवाना शुरू कर दिया ! जिस अंदाज़ में वे मुझसे सवाल पूछ रहे थे उससे तो यही जाहिर हो रहा था कि अब मुझे ही बंद किया जाने वाला हो ! बड़ी मुश्किल से लोकेशन समझकर जान छुड़ाई ! यहाँ बताने लायक बात यह भी बनती है कि टक्कर मरने वाली टैक्सी का नंबर नोट करने में काला-चौकी पुलिस ने कोई खास रूचि नहीं दिखाई जबकि मैं बार-बार इस बात को दोहराए जा रहा था ! साथ ही पुलिस वैन का नंबर बोलने लायक माहौल मुझे मुहैय्या ही नहीं हुआ ! शरीफ एवं सीधा आदमी होने के कारण इस सब से दूर भागना ही उचित जन पड़ा, सो दूर रहकर लड़के के पुलिस द्वारा उठाये जाने का कार्य अन्जामित होते देख वर्ली तक चुपचाप से पैदल ही खिसक आया !

● यहाँ मेरा सवाल बनता है कि क्या एक जिम्मेदार नागरिक होने की सजा खुद को फंसवाकर ही मिलती है ? या वह टैक्सीवाला अधिक अच्छी स्थिति में है जिसने रुकना तक गंवारा नहीं किया जबकि वह दुर्घटना का अहम किरदार था ? या वह पुलिस वैन का ड्राईवर अधिक समझदार निकला जो सरपट खरगोश बन बैठा ? या वे लोग उचित थे जिन्होंने अपनी जुबानों का इस्तेमाल करने जितनी बड़ी महान जहमत उठाई ? या मैं ठीक रहा जिसने अपनी जिम्मेदारियों को निभाने की आधी-अधूरी ही कोशिश की ? या फिर कुछ और ही है जो होना चाहिए पर नहीं होता ? क्या सच में हमारे मन से इंसानियत का इतना अधिक नाश हो चुका है कि हम अपने होने का ही फायदा नहीं उठा पाते हैं और ना ही किसी और के लिए अपना इस्तेमाल कर पाते हैं ? क्या वाकई इंसानियत शब्द को शब्दकोष से निकाले जाने का सही समय आ चुका है.....?

जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh (06-03-2011)
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टिटहरी : ( कहानी )


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         ● शाम सात बजे अपने अडतालीस वर्ग फुटे ऑफिस में बैठा सोच रहा था "आगे क्या होगा जाने...?" कई महीनों से बल्कि कुछ सालों से व्यापार निरंतर अधोगति को प्राप्त किये जा रहा है ! आज जब इकलौता वर्कर भी किसी शादी के नाम पर छुट्टी चला गया तब उसके बदले नौकर बन जाना दिल के किसी कौने में खला भी था, पर मरता क्या ना करता वाला हाल था ! बैंक में बस दस हज़ार रुपये हैं और होली की छुट्टियाँ सामने पड़ी हैं ! जिनसे ऑर्डर्स मिला करते थे वे तो चल दिये रंग-बिरंगे होने को, अब क्या करूँ ? पुराने बिलों को खंगालते एकाध फोन करना समझ आया लेकिन इससे कितना फर्क आ जाना था ?  मेरे संपन्न होने का सभी को यकीन था ! कोई सोच भी नहीं सकता कि आगामी माह से पहले अगर कुछ जरिया नहीं मिला तो शायद भूखों मरने तक की नौबत आ जाने वाली है ! सीधे गरीब होना कितना आसान और सुखद है ना कि जब भी खाने के लाले पड़ने लगें तो सड़क किनारे खड़े होकर पेट भरने लायक इंतजाम कर लो ! यहाँ तो सम्पन्नता का ढोंग करते खुद उस ढोंगी बाबा सा जीवन होने लगा है, जिसे अपने होने से कहीं अधिक अपने बाबा होने का स्वांग रचाते रहना है !

         ● अभी कल ही टीवी में बांद्रा स्टेशन के करीब की झौंपडपट्टी में लगी आग का नज़ारा देखा ! हजारों बेबस-लाचार मासूम लोग एक ही झटके में बिल्डर्स की घटिया स्वार्थी-महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ बेघरबार हो गए ! उनके जलते घरों में जैसे मुझे अपना आज दिखाई देने लगा ! देखा जाये तो ये लोग तो अब मेरे समकक्ष आये हैं वरना बेघरबार मैं हमेशा से किराये के घर में ही तो रहता आया हूँ, जिसका किराया भी कुछ महीनों से सिर चढा हुआ है और जाने किस माह दे सकने लायक होऊँगा ? यदि अपना सारा लेन-देन निबटा कर देखूँ तो उन ताजा बेकसों से कहीं अधिक बेकस खुद को पाउँगा ! वे लोग अब भी शून्य पर टिके हैं परन्तु मैं जाने कब से ऋणात्मक जीवन संग खेल रहा हूँ ! कितना खोखला चोला ओढा रखा है स्वयं को, जैसे असलियत को ह्रदय मानना ही न चाहता हो ! जो जीवन स्तर बना हुआ है उसे बनाये रखना तो दिवास्वप्न सा हो ही गया है, बल्कि हालात तो यहाँ तक बदतर हो चले हैं कि जाने अब आगे कुछ हो पायेगा भी या लौट कर तानों भरी पितृ-शरण लेनी होगी ? एक नज़र से देखा जाये तो कुछ न कुछ काम वहाँ भी करना ही होगा, बैठे ठाले कब तक कोई सहन कर पायेगा ?

         ● शरीर से गहरी निश्वास अनायास ही निष्कासित हो बैठी और सिर छोटी पुस्त वाली किर्सी से टिक गया ! यूँ ही अपने काम के ग्यारह वर्ष बंद पलकों के पीछे से घूम गए ! कितना श्रम किया विगत बरसों में यह मैं ही जनता हूँ ! अपना घर छोड़ मुंबई जैसी महानगरी में आना कोई हँसी खेल नहीं था ! किसी रिश्तेदार द्वारा मुहैया उसके डूबते व्यापार को बढ़ाने में रात दिन जान लगा दी ! नतीजा भी मनवांछित रहा परन्तु हाय री किस्मत, यहाँ से हटाये गए उनके पुराने नातेदारों ने दुश्मनी की हद तक इसे गाँठ से बाँध लिया ! वो दिन और आज का दिन बस रेट की लड़ाई लड़ रहा हूँ ! कभी ऊपर उठने मिला ही नहीं ! सारा मार्जिन और मेहनत प्रतिस्पर्धा की भेंट चढ़ने लगे और अपने को ज़माने की कोशिशों में सिर में सफेदी आ गयी परन्तु जमने के लिए सीमेंट को एक बूंद पानी तक नसीब नहीं हुआ !

         ● इसी बीच परिणय नाम की बीमारी से भेंट हो गयी ! बड़ी खूबसूरत बीमारी घर आ गयी ! मज़े की बात, उसे और कोई नहीं खुद मैं ही ले आया, वह भी खुशी-खुशी गाजे-बाज़ों संग ! कितना खुश था उस दिन जब पहली बार खुशहाल जीवन के स्वप्न संजोने शुरू किये थे ! लेकिन उपरवाले के खेल भी निराले हुआ करते हैं ! घर आयी वस्तु सच में वस्तु ही बन कर रह गयी ! संवेदना विहीन मोम की गुडिया जिसे देखकर खुश तो हुआ जा सकता है परन्तु यह सब देखने तक ही ठीक था, अन्यथा उसके मायने बदल जाने थे ! रिश्तों में भावनाओं की गर्माहट क्या होती है इसे आज तक महसूस नहीं कर पाया ! विगत कई वर्षों से परिणय सूत्र में बंधा हूँ पर आज तक एक दिन भी ऐसा नहीं गुजरा जब लगा हो कि हाँ आज मैं अकेला नहीं हूँ ! कितना सालता है जब आपके साथ कोई हो मगर साथ और अपनेपन के लिए आप रगड-घिसट रहे हों !

         ● पहले बात हो जाया करती थी परन्तु अब हाल उस "टिटहरी" सा हो गया है जिसे सुनते सब हैं पर चूँकि आदत है इसलिए वह आवाज़ अलग से किसी का ध्यानाकर्षित नहीं कर पाती ! यहाँ भी कहाँ कुछ अलग होना था ? सो वही हुआ जिसका डर था, अपने ही आलय में बेसहारा हो बैठे ! हाँ, भूलवश जनसँख्या अवश्य बढ़ गयी ! अब जिम्मेदारियाँ पहले से अधिक थीं और काम उससे भी अधिक रफ़्तार से अधोगति को जा रहा थी ! अक्सर रातों को डरकर उठ बैठना, ह्रदय में रक्त-संचार की बढ़ी गति को एक अजीब सी सिहरन एवं सनसनाहट के साथ यदा-कदा महसूस करते रहना कंपा देता है ! गरदन घुमा कर साथ सोये लोगों को जब देखता हूँ तो लगता है कौन हैं ये ? जिनके लिए आज हृदयगति बढ़कर डराने लगी है, तिस पर भी इन्हें लगता नहीं कि यह सब इन्ही के लिए है ! कुछेक बार मुझमें आये इन परिवर्तनों को भांप भी लिया गया, परन्तु है मजाल जो श्रीमुख से कभी प्रेम के दो मीठे बोल भी विस्फुटित हुए हों अथवा स्नेह से दो उंगलियाँ बालों की सैर ही कर आयी हों, कि शायद मन को कुछ करार आ जाये !!

         ● घर मनुष्य के लिए शारीरिक एवं मानसिक विश्रांति स्थल होता है लेकिन यही घर मकान में तब्दील हो जाये तो आदमी उन दीवारों के बीच जाकर धर्मशाला तलाशे अथवा सकून ? अपनेपन के लिए "टिटहरी" की मद्धिम सी आवाज़ यदा-कदा निकलने लगी है पर नतीजा फिर सिफर ! कुछ समय पहले मन को सकून देती एक नयी सोच ने जबरन कब्ज़ा जमा लिया ! जाने क्या था उस सोच में कि मेंढा घूम-फिर बारहा उसी खूंटे के गिर्द चक्कर काट आता ! कितना समझाया मन को, न जाओ देश पराये पर कोई माने तब ना ! अब जाये भी तो क्यों ना जाये ? जहाँ चारा होगा मेंढे ने घूमना भी तो वहीँ है ना ! जिसने टिटहरी को सुना उसके गिर्द ना बैठे तो क्या पतझड़ के मारे बिन पत्तों के नंगे पेड पर बैठे ? यहाँ भी वहीँ हुआ ! फुदकने के लिए टिटहरी को आखिर मनपसंद वृक्ष मिल ही गया !

         ● इधर कुछ नए रंगों ने जीवन-दस्तक देनी शुरू की वहीं दूसरी तरफ काम ने भी अपने नए दरवाजे खोल दिये लगता है ! इन दिनों कुछ नयी राहें बाहर को इंगित हो रही हैं ! इसके लिए भी कुछ अपने ही जिम्मेदार हैं परन्तु इन अपनों ने बाहर से आकर अचानक ही अपनी जगह बना ली है, पहले से मौजूद नाते तो मस्तिष्क पर ताले अधिक महसूस होते हैं ! अब प्रस्थान होना है नयी राहों के लिए और फिर एक बार शुरू होगा नए रंग में रंगे पुराने सपनों को जीने का नया सिलसिला !

         ● देखें...!! भविष्य की परतों में नया जाने क्या छिपा हुआ है ?


जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh (06-03-2011)

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नोट : इस कहानी को किसी भी जीवित अथवा मृत पात्र से ना जोड़ा जाये...
इसमें वर्तमान की आगजनी का हवाला सिर्फ यथार्थ की अनुभूति देने के लिए दिया गया है...
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बुलबुल और गुलाब -2

The Nightingale and the Rose-2
"बुलबुल और गुलाब"-2

गतांक  से आगे...
(  3  )
    अब बुलबुल उस गुलाब के पौधे की ओर उड़ चली जो पुरानी सूर्य-घडी के निकट उगा हुआ था !

    "मुझे एक लाल गुलाब दे दो" वह चिल्लायी "और बदले में तुम्हारे लिए मैं अपना सबसे मधुर गीत गाऊँगी !"

    लेकिन पौधे ने अपना सर हिला दिया !

    "मेरे गुलाब पीले है" यह उत्तर था उसका ; "उतने ही पीताभ जितने कि गहरी पीली तृणमणि से बने प्राकृतिक सिंहासन पर बैठी किसी मत्स्य-कन्या के बाल हो सकते हैं ! उस कुमुद से भी ज्यादा पीले जो अपने हँसिये संग चरागाह में आयी उस घास काटने की मशीन के आने से पहले तक अपने यौवन से बौराया होता है ! परन्तु तुम मेरे भई के पास जाओ जो उस छात्र की खिडकी तले पनपा हुआ है , संभवतः उससे तुम्हें तुम्हारा वांछित मिल जाये !"

    अब बुलबुल उड़ कर छात्र के वातायन तले उगे गुलाब के पौधे तक पहुंची !

    "मुझे एक लाल गुलाब दो" वह गिडगिडाई ! "और बदले में मेरा सबसे मधुर गीत तुम्हारे लिए होगा !"

    परन्तु हर बार की तरह इसने भी अपने सर को दोनों तरफ नाच जाने दिया !

    उत्तर था : "हाँ , मेरे गुलाब लाल हैं , लाल जितने कि किसी पेंडुकी (कपोत) के पंजे , और सर्वोत्कृष्ट मूँगे के झाग से भी अधिक लाल जो परत दर परत गहराता जाता है किसी सामुद्रिक कन्दरा के मुहाने पर ! लेकिन शरद ऋतु ने मेरी शिराओं को जमा दिया है और तुषार कणों ने मेरी कलियों पर जम उन्हें ठिठुरा दिया है , साथ ही तूफान ने मेरी टहनियों को भी क्षतिग्रस्त कर दिया है और इस तरह पूरे वर्ष मैं एक भी गुलाब नहीं दे पाउँगा !"

    "मुझे एक ही सुर्ख गुलाब चाहिए" बुलबुल पुनः गिडगिडाई "सिर्फ एक लाल गुलाब ! क्या ऐसी कोई राह नहीं , जिससे मैं अपनी वाँछना पूरी कर सकूँ ?"

    "सिर्फ एक ही रास्ता है" पौधे ने प्रत्युत्तर में कहा ! "लेकिन यह भयावह होगा इसलिए यह बात तुम्हें कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हूँ !"

    "इसे कहो मुझ से" बुलबुल फडफडायी ! "मैं नहीं डरूँगी !"

    "यदि सच में तुम लाल गुलाब चाहती हो !" पौधे ने कहना जारी रखा "तुम्हें इसे चन्द्रमा की रौशनी में मधुर संगीत से उत्पन्न करना होगा , और इसे अपने ह्रदय-रक्त से अभिरंजित (रंगना) करना होगा ! अपने सीने को मेरे एक शूल (काँटे) पर रख कर तुम्हें मेरे लिए गाना होगा ! सारी रात , सुबह तक तुम्हें मेरे लिए गाना होगा , और जो काँटा है वह तुम्हारे सीने में गडा होना चाहिए , तुम्हारे जीवन दायिनी रक्त को मेरी शिराओं से प्रवाहाहित होकर मेरा हो जाना होगा !"
(  4  )
    "बहुत से भी बहुत ज्यादा कीमत तय की गयी थी एक गुलाब की - मृत्यु" रो पड़ी बुलबुल ! "जिंदगी सभी के लिए परम आत्मीय होती है ! उसके लिए यही सुखकर होता कि वह चुपचाप से अपनी हरी लकड़ी पर बैठ भानु (सूर्य) को स्वर्ण-रथ पर सवार आते-जाते निहारती और शशि (चंद्रमा) को उसके मौक्तिक-रथ पर अवलोकित करती ! कंटीले दरख़्त की महक कहीं रुचिकर है और नीले घंटियोंनुमा फूल कहीं आनंदायी हैं जो जंगल की घाटियों में छिपे कहीं बिखरे पड़े हैं , और फूलों की झाड़ी जो पहाड़ी पर खड़ी शेखी बघार रही है ! परन्तु अब भी प्रेम उसके लिए जीवन से अधिक महत्वशील था , किसी मासूम चिरैय्या के भोले ह्रदय और एक आदमी के ह्रदय के बीच कैसी तुलना ?"

    सो उसने अपने भूरे बादामी डैनों को फैलाया और असमान में तीर हो चली ! बागीचे पर छाया बन लहराती हुई वह उपवन के पार तक तैर गयी !

    युवा प्रेमी छात्र अभी तक वहीँ घास पर लेटा हुआ था , जहाँ उसने उसे छोड़ा था , और मोतियों के अंचल समान उसके खूबसूरत नयनों से अभी अश्रु बिंदुओं ने सूख कर नहीं दिखाया था !

    "खुश रहो" कराहती बुलबुल ने उच्चारित किया , "खुश रहो ; तुम्हें तुम्हारा सुर्ख लाल गुलाब मिल जाने वाला है ! मैं चाँद की रौशनी में अपने गीत से तुम्हारे लिए इसे बना दूँगी , और इसे रंजित करुँगी अपने स्वयं के ह्रदय का जीवन-रक्त देकर ! इस सब के बदले मैं तुमसे तुम्हारा सच्चा प्रेमी बने रहना माँगती हूँ , उस प्रेम के लिए जो दर्शनशास्त्र से कहीं गंभीर है अगरचे वह गंभीर हो , और जो शक्ति एवं पराक्रम से ज्यादा आकर्षक है गोया कि वह आकर्षक हो ! लपटों के रंग जैसे उसके पंख हैं और उसका शरीर लपट वाले रंग जैसा है ! उसके (लड़के के) ओठ मधुर हैं जैसे शहद , और उसकी साँसें निष्कपट सुगंधि से महकती हों !"

    लड़के ने घास की ओर तकते हुए सिर झुका कर सारी बात सुनी , लेकिन वह समझ नहीं पाया जो कुछ भी बुलबुल ने उससे कहा , उसके लिए तो प्रेम सम्बंधित बातें उतनी ही थीं जो उसने पुस्तकों में लिखी देखी थीं !

    परन्तु बलूत के मजबूत दरख़्त ने उसे समझा , और खिन्न एवं दुखित महसूस किया , उसके लिए नन्ही बुलबुल वह चिड़िया थी जिसने उसकी डालियों पर घौंसला बना उसे आबाद किया था !

    "मेरे लिए एक आखिरी गीत गा दो , ऐ नन्ही चिड़िया" , वह हौले से फुसफुसाया ; "मैं बेहद अकेला महसूस करूँगा जब चली जाओगी !"

    इसलिए बुलबुल ने बलूत के लिए गया , और तब उसकी आवाज़ ऐसी थी जैसे किसी रजत जल-पात्र में बन रहे बुलबुलों की होती है !
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To be continue ... क्रमशः ... Part 3 के लिए...!!

भाग-1 ▬● http://indotrans1.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
भाग-3 ▬●
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लेखक     : Oscar Wilde
अनुवादक : जोगेन्द्र सिंह (02 फरवरी 2011)
कृति       : The Nightingale and the Rose "बुलबुल और गुलाब"
अनुवाद    : English to Hindi

Note :- Dr. Dharmveer Bharti ने बहुत पहले “ऑस्कर वाईल्ड” की कहानियों का हिंदी में अनुवाद किया था... "Oscar Wilde" की लिखी उन्ही कहानियों में से एक "The Nightingale and the Rose" का कुछ भागों में अनुवाद मैंने भी किया है... दिल को छू जाने वाली इस कहानी के अनुवाद में मेरी पूरी कोशिश रही है कि मूल रचना के स्तर को गिराए बगैर अनुवादित रचना को एक बेहतर और आसान से साहित्यिक अंदाज़ में पुनः लिख कर प्रस्तुत करूँ... किस स्तर को छू पाया यह तो इसे पढ़ने वाले ही तय कर पाएँगे तदपि मुझे उम्मीद है कि जितना भी प्रबुद्ध पाठक की हैसियत से आपने सोच रखा है यह उससे बेहतर ही मिलेगी...

जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh +91- 90040 44110


The real link for the source story is given here :-
http://www.eastoftheweb.com/short-stories/UBooks/NigRos.shtml#top
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बुलबुल और गुलाब -1


The Nightingale and the Rose
"बुलबुल और गुलाब"

( 1 )

   "उसने कहा वह मेरे साथ नृत्य करेगी यदि उसके लिए मैं एक लाल गुलाब ले आऊँ ! परन्तु मेरे बगीचे में एक भी लाल गुलाब नहीं है" यह कहते हुए युवा छात्र रोने लगा !

    बगल के बलूत के दरख़्त पर अपने घौसले में बैठी बुलबुल ने उसे रोते सुना और पत्तियों की तरफ देख वह आश्चर्यचकित हो उठी !

    वह रो रहा था "मेरे पूरे बगीचे में लाल गुलाब नहीं है" और उसकी खूबसूरत आँखों के प्याले आँसुओं के मोतियों से भर उठे ! "आह, क्या अदना सी चीज़ पर खुशियाँ टिकी हुई हैं ! जबकि ज्ञानी पुरुषों की सारी लेखनी पढ़ रखी है , और दर्शन-शास्त्र के सारे रहस्य भी अब मेरे हैं , तदापि एक अदने से लाल गुलाब की चाहना ने मेरा जीवन नारकीय बना रखा है !"

     "कम से कम यहाँ एक सच्चा प्रेमी तो है !" बुलबुल कह उठी "रात दर रात उसके लिए मैंने गया है , जबकि क्या उसे मैं नहीं जानती हूँ ? रात दर रात मैंने उसकी कहानी तारों को सुनाई है , और अब मैन उसे देख रही हूँ ! उसके बाल जैसे लाल गुलाबी पारदर्शी पुष्प के सामान हैं , और ओंठ उसके जैसे लाल सुर्ख गुलाब , ठीक वैसे ही जैसी कि उसकी कामना है , परन्तु चेहरा जैसे कुम्हलाया हुआ कांतिहीन गजदंत सा पीलाभ-धवल-अधीर , और दुःख / संताप की स्पष्ट छाप ललाट शिखर पर छपी हुई !"

    "आने वाले कल की रात राजकुमार द्वारा बाल नृत्य (एक प्रकार का अंग्रेजी नृत्य) आयोजित किया गया है !" युवा छात्र के मुख से मर्मर सी ध्वनि प्रस्फुटित हुई , "और मेरा प्रेम भी वहाँ अवतरित होगा ! यदि मैं उसे एक लाल गुलाब ला देता हूँ तब तडके पौ फटने तक वह मेरे साथ नृत्य में लीन रहने वाली है ! काश अगर कि मैं उसे सुर्ख गुलाब ला देता हूँ तो मैं उसे अपनी दोनों बाँहों में भर सकूंगा , और वह मेरे काँधों पर अपना सर झुकाए होगी , और उसके हाथ मेरे हाथों जकड़े होंगे ! लेकिन वहाँ कोई सुर्ख गुलाब नहीं है मेरे बागीचे में , इसलिए अपने साथ मुझे अकेले ही बैठना होगा , और वह विदा कहती हुई मेरे करीब से गुज़र जायेगी ! मेरी ओर उसका ध्यान तक न होगा , और मेरा मासूम ह्रदय चकनाचूर हो जायेगा !"

    "निश्चय ही वह सच्चा प्रेमी है" , बुलबुल ने कहा ! "उसके कष्ट पाने पर मैं क्या गाऊँ ? क्या यह मेरे लिए आनंदायी होगा जबकि वह दर्द में है ? निश्चित ही प्रेम निराली वस्तु है ! यह (प्रेम) हरित मणि ( पन्ना ) से कहीं अधिक महत्वशील और चिकने दूधिया पत्थर से कहीं अज़ीज़ है ! मोती एवं अनार भी इसे खरीद नहीं सकते , ना ही इसे हाट-बाज़ारों में ही रखा जा सकता है ! इसे किसी वणिक वीथी से ख़रीदा भी नहीं जा सकता अथवा इसकी तुलना किसी स्वर्ण तक से नहीं की जा सकती है !"

( 2 )

    "वाध्य-यंत्र-वादक गलियारे में अपनी जगहें लेते चले जायेंगे" , युवा छात्र ने आगे कहा , "वे अपने यंत्रों के तंतुओं को छेड़ना शुरू कर करेंगे , और मेरी प्रेयसी वायलिन एवं हार्प (विदेशी बाजा) की धुन पर तल्लीन होकर नृत्य करने लगेगी ! वह इतनी कोमलता से नृत्य करेगी कि उसके पाद भूमि को छुएंगे तक नहीं , और सारे दरबारी अपनी चटकीली वेशभूषाओं में उसके चारों ओर मंडरा रहे होंगे ! लेकिन मेरे साथ उसे नहीं नाचना था क्योंकि उसे देने के लिए लाल गुलाब जो न था मेरे पास !" इतना कह कह उसने स्वयं को बेदर्दी से घास पर नीचे गिर जाने दिया और अपना मलिन चेहरा हाथों में लेकर जार-जार होकर रोने लगा !

    हरे गिरगिट ने पूछा "तुम क्यों रो रहे हो ?" जबकि उसकी पूँछ उसके पीछे आकाश की ओर लहराए जा रही थी !

    "वाकई , क्यों ?" सूर्य किरण के गिर्द मंडराती एक तितली ने पूछा !

    "सचमुच , क्यों ?" गुलबहार का पुष्प मद्धिम निम्न स्वर में अपने पडौसी से फुसफुसाया !

    "वह एक लाल गुलाब के लिए रो रहा है" कहा बुलबुल ने !

    "मात्र एक लाल गुलाब के लिए !!" वे सारे चिल्लाये ! "कितना अधिक बेहूदा है यह रोना !" और नन्हा गिरगिट जोकि किसी कुटिल चिडचिडे निंदक मनुष्य की भांति था , ठठा कर हँस पड़ा !

    परन्तु बुलबुल उसके संताप का भेद जन चुकी थी और उसने अपने बलूत के वृक्ष पर शांति आरोपित हो जाने दी , उसने अपना गीत बंद कर दिया और सोचने लगी उस गूढ़ प्रेम के विषय में !

    अचानक उसने अपने साँवले बादामी परों को उड़ने के लिए फैलाया , और असमान में बहुत ऊँचे को उड़ चली ! झुरमुटे पर से वह एक छाया के सामान आगे की ओर को बढ़ गयी , और छाया ही की तरह समूचे उपवन को पार कर गयी !

    घास के मैदान के बीचो-बीच एक खूबसूरत गुलाब की झाड़ी खड़ी थी ! जब उसने इसे देखा , वह इसकी ओर उड़ गयी , और इस पर अपनी फुहार सी चमकायी !

    "मुझे एक लाल गुलाब दो" वह गिडगिडायी , "बदले में तुम्हारे लिए मैं अपना सबसे मीठा गीत समर्पित करुँगी!"

    लेकिन झाड़ी ने अपना सिर हिला दिया !

    "मेरा गुलाब सफ़ेद हैं" उसने प्रत्युत्तर दिया ; "उतना ही सफ़ेद जितना कि समंदर का झाग होता है , और यह पहाड की चोटियों पर पड़ी बर्फ से भी ज्यादा सफ़ेद है ! पर तुम मेरे भाई के पास जाओ जोकि पुरानी सूर्य-घडी के निकट उगा हुआ है , संभवतः वह तुम्हें अवश्य ही वह दे देगा जो तुम चाहती हो !"

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To be continue ... क्रमशः ... Part 2 & 3 के लिए...!!

भाग-2 ▬● http://indotrans1.blogspot.com/2011/02/2.html
भाग-3 ▬●
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● लेखक     : Oscar Wilde
● अनुवादक : जोगेन्द्र सिंह (02 फरवरी 2011) +91- 90040 44110
● कृति       : The Nightingale and the Rose "बुलबुल और गुलाब"
● अनुवाद    : English to Hindi

● Note :-
● Dr. Dharmveer Bharti ने बहुत पहले “ऑस्कर वाईल्ड” की कहानियों का हिंदी में अनुवाद किया था...
● "Oscar Wilde" की लिखी उन्ही कहानियों में से एक "The Nightingale and the Rose" का कुछ भागों में अनुवाद मैंने भी किया है...
● दिल को छू जाने वाली इस कहानी के अनुवाद में मेरी पूरी कोशिश रही है कि मूल रचना के स्तर को गिराए बगैर अनुवादित रचना को एक बेहतर और आसान से साहित्यिक अंदाज़ में पुनः लिख कर प्रस्तुत करूँ...
किस स्तर को छू पाया यह तो इसे पढ़ने वाले ही तय कर पाएँगे तदपि मुझे उम्मीद है कि जितना भी प्रबुद्ध पाठक की हैसियत से आपने सोच रखा है यह उससे बेहतर ही मिलेगी...

●  जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh +91- 90040 44110


The real link for the source story is given here :-
http://www.eastoftheweb.com/short-stories/UBooks/NigRos.shtml#top
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पत्र - सड़क समस्या पर

 B-118, Adarsh Nagar
Mubai

December 21, 2010

The Editor
Indian Express
Mumbai

sir ,
I would like to bring to the notice of the authorities through the columns of your esteemed paper the poor condition of roads and streets of our locality.

The roads in Adarsh Nagar are in bad shape, having pits at every step and the pits leads to road accidents. During the rainy season they get filled with dirty water . Mosquitoes get place to breed which leads to out break of diseases like malaria . The general condition of our locality is in very bad shape. Nobody comes for sweeping , so one can see heaps of rubbish scattered all around.
It is high time the authorities wake up and take effective remedial steps.

Yours faithfully
XYZ 

बी-118, आदर्श नगर
मुंबई

दिसंबर 21, 2010
संपादक महोदय
इंडियन एक्सप्रेस
मुंबई

श्रीमान ,
हमारे इलाके में सड़कों एवं गलियों की हुई पड़ी दुर्दशा की तरफ आपके सम्माननीय पत्र के एक स्तभ द्वारा सम्बंधित विभाग के उच्चाधिकारीयों का धनाकर्षण चाहता हूँ !

आदर्श नगर की सड़कें बुरी दशा में हैं , हर कदम पर गड्ढे बने हैं , अक्सर ये गड्ढे दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार होते हैं ! बारिश के मौसम में ये गंदले पानी से भर जाते हैं और तब मच्छरों को इसमें प्रजनन के लिए उचित परिस्थितीयां उपलब्ध होती हैं जोकि मलेरिया जैसी कई अन्य बीमारियों के प्रकोप का कारण बनती हैं ! हमारे इलाके की सामान्य स्थिति बड़ी ही बुरी दशा में है ! कोई भी झाड़ू लगाने नहीं आता है , इसलिए यहाँ चारों तरफ गन्दगी के ढेर बिखरे पड़े देखे जा सकते हैं ! यह चरम है और अब सम्बंधित अधिकारीयों को नींद से जाग कर असरदार सुधारात्मक कदम उठाने ही होंगे !

आपका भवदीय
अ ब स

अनुवाद ● जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh Thu, Jan 13, 2011 at 11:38 PM
.

आल्हाद से निर्वासन

We, unaccustomed to courage
exiles from delight
live coiled in shells of loneliness
until love leaves its high holy temple
and comes into our sight
to liberate us into life.

Love arrives
and in its train come ecstasies
old memories of pleasure
ancient histories of pain.
Yet if we are bold,
love strikes away the chains of fear
from our souls.

We are weaned from our timidity
In the flush of love's light
we dare be brave
And suddenly we see
that love costs all we are
and will ever be.
Yet it is only love
which sets us free.

Maya Angelou 


असहज हैं हम साहसिक होने को
आल्हाद से निर्वासन
कुंडलित, अकेलेपन के खोल में
तब तक जब तक कि
प्रेम तज न दे अपना पवित्र मंदिर
और आ जाये हमारे संज्ञान में
जीवन में हमें आजाद करने
प्रेम का प्रस्फुटन
और धारा इसकी, लाती है परमानन्द
खुशियों भरी यादें पुरानी
प्राचीन इतिहास दर्द भरे
हों निर्भीक हम, तब भी
प्रेम पराजय देता है भय को
हमारी आत्मा की गहराई से
होते हैं कायरता से हम विमुख
प्रेम आवेग के आलोक में
साहस की पा जाते हैं हिम्मत
और अचानक हम देखते हैं
कि प्यार कीमती है हम सभी के लिए
और रहेगा, हमेशा
यह केवल प्रेम ही है

अनुवाद ● जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh Thu, Dec 23, 2010 at 4:40 AM
.

ईश्वर ही की सेवा

The service of mankind is the service of God. There is not a single religion which does not preach the ideal of service to humanity. The idea that God loves those who love their fellow men is rightly brought out by the famous poet Leigh Hunt in his poem Abou Ben Adam . In a dream Abou saw an angel preparing a list of those who loved God. Abou's name did not figure in the list . But since he loved his fellow men , his name was put at the top in the list of those whom God had blessed. Mother Teresa was a living example of a lady who had dedicated her life to the service of the poorest of the poor , the dying and the destitute. For her noble deeds she is praised throughout the world. Jesus once told the people ," I was hungry and you gave Me food, I was thirsty and you gave Me drink." What is given to man is directly given to God. 

मनुष्य जाति की सेवा एक तरह से ईश्वर ही की सेवा है ! यहाँ कोई एक भी ऐसा अकेला धर्म नहीं है जो मानवता की सेवा का उपदेश ना देता हो ! प्रसिद्द कवि "लेफ हंट" ने अपनी कविता "अबू बेन एडम" से उल्लेखित किया है एक ऐसा विचार जिसमें ईश्वर उनसे प्रेम रखता है जो उसके मानने वालों से प्रेम करते हैं ! अपने एक स्वप्न में अबू ने क्या देखा कि एक परी उनके नामों कि सूची बना रही है जिन्होंने ईश्वर को प्रेम किया ! अबू का अपना नाम उस सूची में दीगर नहीं हो रहा था ! परन्तु चूँकि उसने अपने साथी मनुष्यों से प्रेम किया था, उसका नाम उन लोगों में सबसे ऊपर मिला जिन्हें स्वयं भगवान का आशीष मिला होता है ! "मदर टेरेसा" एक महिला का एक जीवित उदाहरण थीं जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन उन लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया था जो गरीब-गुरबार, मरते हुए और अभावग्रस्त लोग थे ! उनके श्रेष्ठ कार्यों के लिए वे सम्पूर्ण विश्व में पूजी जाती हैं ! एक बार जीसस ने लोगों को बताया "मैं भूखा था और तुमने मुझे खाना दिया, मैं प्यासा था और तुमने मुझे पीने को दिया !" जो कुछ भी आदमी को दिया जायेगा वह सीधे भगवान तक पहुँच जायेगा !

अनुवाद : जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh Thu, Dec 23, 2010 at 3:40 AM
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नोटिस - बाढ़ पीडितों की मदद

NOTICE
The cultural society of our building is going to organize a charity show in an aid of the flood victims of Leh . The show will be held at 5 p.m. on Saturday , 17 December, 2010, in building campus. Mr. Jogendra Singh , The President of the building , has kindly consented to preside.
Children interested in participating in the show should give their namesto the undersigned in the morning latest by 16 December, 2010.

Secretary , Maulshree building
12 December, 2010
Worli


एक सूचना :-
हमारी भवन सांस्कृतिक संस्था लेह के बाढ़ पीडितों की सहायतार्थ एक परोपकार समारोह आयोजित करने जा रही है ! यह समरोह शनिवार दिनांक 17-दिसंबर-2010 सायंकाल 5 बजे हमारे भवन समूह परिसर में आयोजित होगा ! श्रीमान जोगेन्द्र सिंह , जोकि हमारे भवन सबुह के कार्यकारी व्यवस्थापक हैं उन्होंने सभापति बनने की अनुमति भी दे दी है !
भाग लेने के इच्छुक बच्चे अपनी हस्ताक्षरयुक्त अर्जियां 16 दिसंबर, 2010 से पहले जमा करवा दें !

सचिव , मौलश्री भवन समूह,
12 दिसंबर, 2010
वर्ली.

अनुवाद : जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh  Mon, Dec 20, 2010 at 3:58 PM
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पत्र - जलापूर्ति समस्या पर



Dec 14, 2010

The Editor
The Hindustan Times
Mumbai


sir ,
Through the esteemed columns of your newspaper, I wish to draw the attention of the municipal authorities towards the inadequate water supply in our locality. It is really very unfortunate that the Municipal Corporation of Mumbai is rather unconcerned about the provision of civic amenities to the public in our area in particular. water supplies goes off even at peak hours in the morning when everyone has got to get ready for the day. All this causes a great inconvenience to everyone.
May we expect the water supply will soon be regulated?

Yours truly
xyz


दिसंबर 14, 2010

संपादक महोदय
द हिंदुस्तान टाईम्स
मुंबई !

श्रीमान ,
आपके समाचारपत्र के सम्माननीय स्तंभ द्वारा, हमारे रहवास क्षेत्र विशेष में अपर्याप्त जल आपूर्ति की ओर महानगरपालिका के उच्चाधिकारियों का ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा ! यह देखना सच में दुर्भाग्यपूर्ण है कि निसंदेह ही हमारे क्षेत्र विशेष में मुंबई महानगरपालिका अपने जनता के प्रति प्रावधान वाली नागरी सुविधाओं के प्रति पूर्णतया उदासीन है ! सुबह के व्यततम घंटों के बीच भी पानी की आपूर्ति रुक जाया करती है , जबकि हर किसी को स्वयं को दिन भर के लिए तैयार करना होता है ! इस सब के कारण सभी के लिए एक बहुत बड़ी असुविधा नित प्रति उत्पन्न होती है !
हमें आशा है कि शीघ्रातिशीघ्र जलापूर्ति सामान्य हो जायेगी !

भवदीय
( अ ब स )
अनुवाद : जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh Thu, Dec 16, 2010 at 1:41 AM
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