बुलबुल और गुलाब -1
Posted by Unknown in अंग्रेजी-हिंदी अनुवाद, कहानी अनुवाद, साहित्यिक अनुवाद on Wednesday, February 2, 2011
The Nightingale and the Rose
"बुलबुल और गुलाब"
"बुलबुल और गुलाब"
( 1 )
"उसने कहा वह मेरे साथ नृत्य करेगी यदि उसके लिए मैं एक लाल गुलाब ले आऊँ ! परन्तु मेरे बगीचे में एक भी लाल गुलाब नहीं है" यह कहते हुए युवा छात्र रोने लगा !
बगल के बलूत के दरख़्त पर अपने घौसले में बैठी बुलबुल ने उसे रोते सुना और पत्तियों की तरफ देख वह आश्चर्यचकित हो उठी !
वह रो रहा था "मेरे पूरे बगीचे में लाल गुलाब नहीं है" और उसकी खूबसूरत आँखों के प्याले आँसुओं के मोतियों से भर उठे ! "आह, क्या अदना सी चीज़ पर खुशियाँ टिकी हुई हैं ! जबकि ज्ञानी पुरुषों की सारी लेखनी पढ़ रखी है , और दर्शन-शास्त्र के सारे रहस्य भी अब मेरे हैं , तदापि एक अदने से लाल गुलाब की चाहना ने मेरा जीवन नारकीय बना रखा है !"
"कम से कम यहाँ एक सच्चा प्रेमी तो है !" बुलबुल कह उठी "रात दर रात उसके लिए मैंने गया है , जबकि क्या उसे मैं नहीं जानती हूँ ? रात दर रात मैंने उसकी कहानी तारों को सुनाई है , और अब मैन उसे देख रही हूँ ! उसके बाल जैसे लाल गुलाबी पारदर्शी पुष्प के सामान हैं , और ओंठ उसके जैसे लाल सुर्ख गुलाब , ठीक वैसे ही जैसी कि उसकी कामना है , परन्तु चेहरा जैसे कुम्हलाया हुआ कांतिहीन गजदंत सा पीलाभ-धवल-अधीर , और दुःख / संताप की स्पष्ट छाप ललाट शिखर पर छपी हुई !"
"आने वाले कल की रात राजकुमार द्वारा बाल नृत्य (एक प्रकार का अंग्रेजी नृत्य) आयोजित किया गया है !" युवा छात्र के मुख से मर्मर सी ध्वनि प्रस्फुटित हुई , "और मेरा प्रेम भी वहाँ अवतरित होगा ! यदि मैं उसे एक लाल गुलाब ला देता हूँ तब तडके पौ फटने तक वह मेरे साथ नृत्य में लीन रहने वाली है ! काश अगर कि मैं उसे सुर्ख गुलाब ला देता हूँ तो मैं उसे अपनी दोनों बाँहों में भर सकूंगा , और वह मेरे काँधों पर अपना सर झुकाए होगी , और उसके हाथ मेरे हाथों जकड़े होंगे ! लेकिन वहाँ कोई सुर्ख गुलाब नहीं है मेरे बागीचे में , इसलिए अपने साथ मुझे अकेले ही बैठना होगा , और वह विदा कहती हुई मेरे करीब से गुज़र जायेगी ! मेरी ओर उसका ध्यान तक न होगा , और मेरा मासूम ह्रदय चकनाचूर हो जायेगा !"
"निश्चय ही वह सच्चा प्रेमी है" , बुलबुल ने कहा ! "उसके कष्ट पाने पर मैं क्या गाऊँ ? क्या यह मेरे लिए आनंदायी होगा जबकि वह दर्द में है ? निश्चित ही प्रेम निराली वस्तु है ! यह (प्रेम) हरित मणि ( पन्ना ) से कहीं अधिक महत्वशील और चिकने दूधिया पत्थर से कहीं अज़ीज़ है ! मोती एवं अनार भी इसे खरीद नहीं सकते , ना ही इसे हाट-बाज़ारों में ही रखा जा सकता है ! इसे किसी वणिक वीथी से ख़रीदा भी नहीं जा सकता अथवा इसकी तुलना किसी स्वर्ण तक से नहीं की जा सकती है !"
( 2 )
"वाध्य-यंत्र-वादक गलियारे में अपनी जगहें लेते चले जायेंगे" , युवा छात्र ने आगे कहा , "वे अपने यंत्रों के तंतुओं को छेड़ना शुरू कर करेंगे , और मेरी प्रेयसी वायलिन एवं हार्प (विदेशी बाजा) की धुन पर तल्लीन होकर नृत्य करने लगेगी ! वह इतनी कोमलता से नृत्य करेगी कि उसके पाद भूमि को छुएंगे तक नहीं , और सारे दरबारी अपनी चटकीली वेशभूषाओं में उसके चारों ओर मंडरा रहे होंगे ! लेकिन मेरे साथ उसे नहीं नाचना था क्योंकि उसे देने के लिए लाल गुलाब जो न था मेरे पास !" इतना कह कह उसने स्वयं को बेदर्दी से घास पर नीचे गिर जाने दिया और अपना मलिन चेहरा हाथों में लेकर जार-जार होकर रोने लगा !
हरे गिरगिट ने पूछा "तुम क्यों रो रहे हो ?" जबकि उसकी पूँछ उसके पीछे आकाश की ओर लहराए जा रही थी !
"वाकई , क्यों ?" सूर्य किरण के गिर्द मंडराती एक तितली ने पूछा !
"सचमुच , क्यों ?" गुलबहार का पुष्प मद्धिम निम्न स्वर में अपने पडौसी से फुसफुसाया !
"वह एक लाल गुलाब के लिए रो रहा है" कहा बुलबुल ने !
"मात्र एक लाल गुलाब के लिए !!" वे सारे चिल्लाये ! "कितना अधिक बेहूदा है यह रोना !" और नन्हा गिरगिट जोकि किसी कुटिल चिडचिडे निंदक मनुष्य की भांति था , ठठा कर हँस पड़ा !
परन्तु बुलबुल उसके संताप का भेद जन चुकी थी और उसने अपने बलूत के वृक्ष पर शांति आरोपित हो जाने दी , उसने अपना गीत बंद कर दिया और सोचने लगी उस गूढ़ प्रेम के विषय में !
अचानक उसने अपने साँवले बादामी परों को उड़ने के लिए फैलाया , और असमान में बहुत ऊँचे को उड़ चली ! झुरमुटे पर से वह एक छाया के सामान आगे की ओर को बढ़ गयी , और छाया ही की तरह समूचे उपवन को पार कर गयी !
घास के मैदान के बीचो-बीच एक खूबसूरत गुलाब की झाड़ी खड़ी थी ! जब उसने इसे देखा , वह इसकी ओर उड़ गयी , और इस पर अपनी फुहार सी चमकायी !
"मुझे एक लाल गुलाब दो" वह गिडगिडायी , "बदले में तुम्हारे लिए मैं अपना सबसे मीठा गीत समर्पित करुँगी!"
लेकिन झाड़ी ने अपना सिर हिला दिया !
"मेरा गुलाब सफ़ेद हैं" उसने प्रत्युत्तर दिया ; "उतना ही सफ़ेद जितना कि समंदर का झाग होता है , और यह पहाड की चोटियों पर पड़ी बर्फ से भी ज्यादा सफ़ेद है ! पर तुम मेरे भाई के पास जाओ जोकि पुरानी सूर्य-घडी के निकट उगा हुआ है , संभवतः वह तुम्हें अवश्य ही वह दे देगा जो तुम चाहती हो !"
● To be continue ... क्रमशः ... Part 2 & 3 के लिए...!!
भाग-2 ▬● http://indotrans1.blogspot.com/2011/02/2.html
भाग-3 ▬●
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● लेखक : Oscar Wilde
● अनुवादक : जोगेन्द्र सिंह (02 फरवरी 2011) +91- 90040 44110
● कृति : The Nightingale and the Rose "बुलबुल और गुलाब"
● अनुवाद : English to Hindi
● Note :-
● Dr. Dharmveer Bharti ने बहुत पहले “ऑस्कर वाईल्ड” की कहानियों का हिंदी में अनुवाद किया था...
● "Oscar Wilde" की लिखी उन्ही कहानियों में से एक "The Nightingale and the Rose" का कुछ भागों में अनुवाद मैंने भी किया है...
● दिल को छू जाने वाली इस कहानी के अनुवाद में मेरी पूरी कोशिश रही है कि मूल रचना के स्तर को गिराए बगैर अनुवादित रचना को एक बेहतर और आसान से साहित्यिक अंदाज़ में पुनः लिख कर प्रस्तुत करूँ...
किस स्तर को छू पाया यह तो इसे पढ़ने वाले ही तय कर पाएँगे तदपि मुझे उम्मीद है कि जितना भी प्रबुद्ध पाठक की हैसियत से आपने सोच रखा है यह उससे बेहतर ही मिलेगी...
● जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh +91- 90040 44110
The real link for the source story is given here :-
http://www.eastoftheweb.com/short-stories/UBooks/NigRos.shtml#top
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# by डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति - March 5, 2011 at 12:05 AM
बहुत सुन्दर अनुवाद है जोगिन्द्र जी...अभी अन्य भाग भी पढ़ने है ..सादर