स्वार्थी दैत्य : The Selfish Giant
Posted by Unknown in -Oscar Wilde, अंग्रेजी-हिंदी अनुवाद, कहानी अनुवाद, साहित्यिक अनुवाद on Friday, April 8, 2011
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नरम हरी घास के साथ यह एक बड़ा सुंदर प्यारा बगीचा था ! घास पर यहाँ वहाँ खूबसूरत फूल गगन में चमकते सितारों की तरह खड़े थे ! वहीं बारह आडू के दरख़्त खड़े थे, वसंत काल में जिनके गुलाबी और मौक्तिक (मोती) से नाज़ुक पुष्प फूटने लग पड़ते थे, और शरद ऋतु में जिनके फलों के बौर पकने लगते थे ! इसकी शाखाओं पर बैठ चिरैया का गाया गीत इतना मधुर होता था कि उसे सुनने के लिए बच्चे अकसर अपना खेल रोक दिया करते थे ! आपस में जोश के साथ बतियाते "कितना अच्छा लगता है ना यहाँ !"
एक दिन दैत्य वापस आ गया ! वह अपने राक्षस मित्र कोर्निश के पास रहने गया हुआ था और पिछले सात बरसों से अपने उसी मित्र के पास था ! सात वर्षों की समाप्ति पर उसने उससे सब बातें की ! उसकी बातचीत सीमित थी और तब उसने अपने महल लौट जाने का निश्चय कर लिया ! वापस आने पर वह क्या देखता है कि बच्चे उसके बगीचे में खेलने में मशगूल हैं !
"तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो" वह बड़ी कर्कश आवाज में चिल्लाया और बच्चे डरकर भाग गये !
"ये बगीचे मेरे अपने हैं" दैत्य बोला ! "इस बात को कोई भी समझ सकता है, और मैं अपने सिवा को भी यहाँ खेलने की अनुमति नहीं दूँगा !" अतः उसने बगीचे के चारों ओर एक ऊँची दीवार बनायीं और तख्ती पर लिखकर सूचना टांग दी !
"अनाधिकृत प्रविष्ट होने वालों पर मुकदमा चलाया जाएगा !"
वह एक बहुत ही स्वार्थी दैत्य था !
बेचारे गरीब बच्चों के पास खेलने के लिए अब कोई स्थान नहीं था ! उन्होंने सड़क पर खेलने की कोशिश की परन्तु सड़क कठोर पत्थरों एवं धूल से भरी हुई थी और वे इसे पसंद नहीं कर पाए ! अपनी कक्षाओं के पश्चात उस ऊँची दीवार के गिर्द भटकते और भीतर के खूबसूरत बगीचे के बारे में चर्चायें करते रहते थे ! एक दूसरे से वे कहते "वहाँ कितने खुश थे हम सब !"
फिर वसंत आया और यहाँ-वहाँ पूरे देश में छोटी चिडियाएँ थीं और नन्हे-2 फूल खिल उठे ! केवल स्वार्थी दैत्य के बगीचे में अब तक सर्दी का ही मौसम था ! चिड़ियों ने वहाँ गाना नहीं चाहा कि वहाँ कोई बच्चा नहीं था और पेड फूल खिलाना भूल गए ! एक बार एक खूबसूरत फूल ने घास के बीच से अपना सर निकाला, लेकिन जैसे ही उसने नोटिस बोर्ड को देखा उसे बच्चों के लिए बेहद दुख हुआ, और अपना निकला सर उसने फिर से घास में सरका लिया ! और जो खुश थे, वे थे हिमपात और तुषार (ओस) ! वे चिल्लाये "वसंत अवश्य इस बगीचे को भूल गया है ! इसलिए हम यहाँ पूरे वर्ष भर रहेंगे !" हिमपात ने अपने महान लबादे से घास को ढँक लिया, और ओस ने सभी पेड़ों को चांदी से पोत दिया ! उन्होंने उत्तरी हवा को भी आमंत्रित कर लिया, और वह आ गयी ! फरों से लिपटकर वह आयी और सारे दिन बगीचे में गरजती फिरी ! उसने चिमनी के बर्तन को उड़ा कर नीचे गिरा दिया ! "यह एक रमणीय स्थल है, "उसने कहा, "हमें ओलावृष्टि को भी बुला लेना चाहिए !" अतएव ओलावृष्टि भी आ गया ! हर दिन तीन-3 घंटों तक उद्विग्न होकर महल की छतों की पत्थर की पट्टियां पर बरसते हुए उनमें से अधिकतर को उसने तोड़ डाला ! उसके बाद वह पूरे बगीचे में जितनी तेजी से संभव हुआ उतनी तेजी से गोल-2 भागने लगा ! वह धूसर रंग (ग्रे) से सजा था और उसकी साँसें बर्फ की तरह ठंडी थीं !
"मैं समझ नहीं पा रहा हूँ, इस बार वसंत के आने में इतनी देरी क्यों हो रही है ?" स्वार्थी दैत्य ने सोचा ! वह खिडकी में बैठा बाहर अपने ठन्डे सफ़ेद बगीचे को देख रहा था ! "मुझे आशा है जल्द ही इस मौसम में परिवर्तन आयेगा !"
लेकिन वसंत कभी नहीं आया, ना ही गर्मी आयी ! शरद ऋतु ने हर बगीचे में सुनहरा फल दिया, परन्तु दैत्य के बगीचे में उसने कुछ नहीं दिया ! "वह बहुत अधिक स्वार्थी है" ऐसा शरद ने कहा ! अतएव वहाँ हमेशा सर्दी थी ! उत्तरी हवा, ओलावृष्टि, तुषार (ओस) और हिमपात पेड़ों को माध्यम बना नृत्य करने लगे !
एक सुबह दैत्य के कानों में मधुर संगीत पड़ा तो वह अपने बिस्तर में नींद से जाग पड़ा !
वह बाहर क्या देखता है ?
उसने देखा एक सबसे अद्भुत दृश्य ! बगीचे की दीवार में बने एक छोटे से छेद से रेंगकर भीतर आये छोटे बच्चे पेड की शाखों पर बैठे हुए हैं ! बच्चों को वापस आया पाकर पेड बेहद प्रफुल्लित हैं और इस वजह से उन्होंने स्वयं को फूलों से ढाँप लिया है ! और अपनी बाँहें (टहनियाँ) बच्चों के सिरों पर कोमलता से लहरा रहे हैं ! चिडियाएँ खुशी के मारे चहचहाती हुई यहाँ-वहाँ उडती फिर रही थीं और घास में से सर निकालकर छोटे फूल ऊपर देखते हुए हँस रहे थे ! यह समूचा नयनाभिराम (आँखों को भा जाने वाला) परिदृश्य बड़ा खूबसूरत था ! केवल एक कौने में शरद ऋतु अब भी वहाँ मौजूद थी ! यह उद्यान के सुदूर कोने में था, और इसमें एक छोटा लड़का खड़ा था ! वह इतना छोटा था कि पेड की शाखाओं तक नहीं पहुँच पा रहा था और वह इसके चारों ओर मंडराता फिर रहा था और धाड़ें मारकर रो रहा था ! बेचारा पेड अब भी ठंडी ओस और बर्फ़बारी से घिरा हुआ था और इसके ऊपर उत्तरी हवाएँ गरजती हुई बह रही थीं ! "ऊपर चढो ! छोटे लड़के" पेड ने कहा, साथ ही अपनी शाखाओं को जितना संभव हुआ उतना नीचे की ओर झुका दिया, लेकिन लड़का बहुत छोटा था !
इसे देख दैत्य का ह्रदय पिघल गया ! "इतना स्वार्थी कैसे हो गया मैं" उसने कहा; "अब मैं जान गया हूँ, अभी तक वसंत क्यों नहीं आया था ! मैं उस गरीब बच्चे को पेड के शीर्ष पर बिठाऊँगा, और फिर दीवार गिरा दूँगा और मेरा बगीचा हमेशा-2 के लिए बच्चों के खेलने का मैदान बन जायेगा !" अब तक जो कुछ कर चुका था उसके लिए उसे वास्तव में बड़ा खेद महसूस हो रहा था !
इसलिए उसने दबे पाँव सीढियों से नीचे उतरकर काफी धीरे से दरवाज़ा खोला और बगीचे में गया ! लेकिन जब बच्चों ने उसे देखा तो चूँकि वे उससे अत्यधिक भयभीत थे अतः सारे दूर भाग गए और फिर से बगीचे में सर्दी व्याप्त हो गयी ! केवल छोटा लड़का नहीं भगा क्योंकि उसकी आँखें आँसुओं से इतनी तर थीं कि उसे आता हुआ भीमकाय दैत्य दिखायी ही नहीं दिया ! दैत्य आकर उसके पीछे खड़ा हो गया और उसने बच्चे को कोमलता से अपने हाथों में उठाकर ऊपर पेड पर बिठा दिया और इसके साथ ही पेड पर एक ही बार में बौर (फूलों का खिलना) छा गया, और चिड़िया ने इस पर आकर अपना गाना शुरू कर दिया ! और छोटे बालक ने अपनी दोनों बांहों को फैलाकर दैत्य के गले को उनमें भर लिया और उसे चूम लिया ! जब अन्य बच्चों ने देखा कि दैत्य अब दुष्ट नहीं रहा तो वे भी वापस लौट आये और उनके साथ ही वसंत भी लौट आया ! "छोटे बच्चों, अब यह तुम्हारा बगीचा है" दैत्य ने कहा, और इसी के साथ उसने एक विशालकाय कुल्हाड़ी लेकर दीवार को नीचे गिरा दिया ! दोपहर को लोग बारह बजे जब बाज़ार को जाने लगे तो उन्होंने बच्चों के साथ दैत्य को सबसे सुन्दर बगीचे में खेलते पाया ! ऐसा सुन्दर बगीचा जोकि उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था !
बच्चे सारे दिन खेले, और शाम को वे दैत्य के पास उसे अलविदा कहने आये !
दैत्य : "लेकिन तुम्हारा छोटा साथी कहाँ है ? वह बच्चा जिसे मैंने पेड पर बिठाया था !" दैत्य को वह सबसे अधिक प्यारा था कि उसने उसे चूमा था !
"हम नहीं जानते" बच्चों ने ज़वाब दिया ! "वह कहीं दूर चला गया है !"
"तुम लोग कल यहाँ आने के लिए निश्चित ही उसे बताना और खेलने के लिए कल फिर आओ" दैत्य ने कहा ! लेकिन बच्चों ने कहा वे नहीं जानते कि वह कहाँ रहता है, और उससे पहले उसे कभी देखा भी नहीं था ! यह सुनकर दैत्य बहुत उदास हो गया !
सालों बीत गये ! दैत्य काफी बूढा और कमजोर हो चुका था ! अब वह और अधिक नहीं खेल सकता था, इसलिए अपनी आरामकुर्सी पर बैठ कर बच्चों को खेलते हुए देखता और आपने बगीचे की प्रसंशा किया करता ! "मेरे पास बहुत से खूबसूरत फूल हैं" वह कहता ! "लेकिन सबसे अधिक सुन्दर फूल बच्चे हैं !"
सर्दियों की एक सुबह तैयार होकर उसने अपनी खिड़की से बाहर देखा ! अब उसे सर्दी से नफरत नहीं थी, उसे पता था कि वसंत के लिए यह महज़ एक नींद है और यह कि अभी फूल आराम कर रहे हैं !
एक सुबह वह अपनी खिडकी के पास खड़ा बाहर देख रहा था कि अचानक उसने आश्चर्य से अपनी आँखें मलीं और सामने देखा, फिर देखता ही रह गया ! यह निश्चित रूप से एक अद्भुत दृश्य था ! उद्यान के सुदूरवर्ती कोने में एक पेड बहुत सुन्दर सफ़ेद फूलों से ढंका हुआ था ! इसकी सभी शाखाएँ सुनहरी और उन पर चाँदी के फल लटक रहे थे, और इसके नीचे खड़ा था वह छोटा लड़का, जिसने उसे प्यार किया था !
बेहद खुश दैत्य सीढियों से नीचे भागा और बाहर बगीचे में निकल गया ! तेजी से उसने घास का मैदान पार किया, और बच्चे के पास आया ! जैसे ही वह बिलकुल करीब आया उसका चेहरा गुस्से से लाल भभूका हो गया, और वह बोला : "किसने तुम्हें घाव देने की हिम्मत की ?" बच्चे के हाथों की हथेलियों पर नाखूनों के दो निशान थे, और दो नाखूनों के निशान उसके छोटे से पाँवों पर थे !
"किसने हिम्मत की, तुम्हें घाव देने की ?" दैत्य चिल्लाया, "मुझे बताओ, मैं एक बड़ी तलवार से उसे मार डालूँगा !"
"नहीं !" बच्चे ने उत्तर दिया,"लेकिन ये प्यार के घाव हैं !"
"तू कौन है ?" दैत्य ने पूछा, इसके साथ ही जाने क्यों उस पर एक भय सा व्याप्त हो गया, और वह छोटे बच्चे के सामने घुटनों के बल बैठ गया !
बच्चा दैत्य की तरफ देख हौले से मुस्कुराया और कहने लगा : "तुमने एक दिन मुझे अपने बगीचे में खिलाया था, आज तुम्हें मेरे साथ मेरे बगीचे में चलना चाहिए, जोकि स्वर्ग है !"
और तब, जब दोपहर को बच्चे बगीचे की तरफ भाग कर आये, पेड के नीचे उन्होंने दैत्य को मरा हुआ पाया, जिसे सफ़ेद फूलों की चादर ने ढाँप रखा था ! और ऊपर स्वर्ग से झाँकता दैत्य मंद-मंद मुस्कुरा रहा था !
Translator : Jogendra Singh (जोगेन्द्र सिंह 1977-Current) +91.9004044110
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Story : The Selfish Giant (Oscar Wilde 1854-1900)
Source : http://www.wilde-online.info/the-selfish-giant.html
Oscar Wilde - playwright, novelist, poet, critic
Born: October 16, 1854
Birthplace: Dublin, Ireland
Died: November 30, 1900 in Paris, France (cerebral meningitis)
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हम कहाँ हैं ? : ( संस्मरण )
Posted by Unknown in मेरी कहानियाँ, मेरे संस्मरण (My Reminiscence) on Monday, March 7, 2011
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● नोट : नीचे मौजूद वक्तव्य मेरी अपनी आँखों देखी सच्ची घटना है जो कुछ साल पहले घटित हुई थी...
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● जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh (06-03-2011)
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टिटहरी : ( कहानी )
Posted by Unknown in गंभीर लेख, मेरी कहानियाँ on Sunday, March 6, 2011
● टिटहरी : ( कहानी ) ● Copyright © 2009-2011
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● देखें...!! भविष्य की परतों में नया जाने क्या छिपा हुआ है ?
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● नोट : इस कहानी को किसी भी जीवित अथवा मृत पात्र से ना जोड़ा जाये...
इसमें वर्तमान की आगजनी का हवाला सिर्फ यथार्थ की अनुभूति देने के लिए दिया गया है...
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बुलबुल और गुलाब -2
Posted by Unknown in -Oscar Wilde, अंग्रेजी-हिंदी अनुवाद, कहानी अनुवाद, साहित्यिक अनुवाद on Friday, February 4, 2011
"बुलबुल और गुलाब"-2
● To be continue ... क्रमशः ... Part 3 के लिए...!!
भाग-1 ▬● http://indotrans1.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
भाग-3 ▬●
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लेखक : Oscar Wilde
कृति : The Nightingale and the Rose "बुलबुल और गुलाब"
अनुवाद : English to Hindi
Note :- Dr. Dharmveer Bharti ने बहुत पहले “ऑस्कर वाईल्ड” की कहानियों का हिंदी में अनुवाद किया था... "Oscar Wilde" की लिखी उन्ही कहानियों में से एक "The Nightingale and the Rose" का कुछ भागों में अनुवाद मैंने भी किया है... दिल को छू जाने वाली इस कहानी के अनुवाद में मेरी पूरी कोशिश रही है कि मूल रचना के स्तर को गिराए बगैर अनुवादित रचना को एक बेहतर और आसान से साहित्यिक अंदाज़ में पुनः लिख कर प्रस्तुत करूँ... किस स्तर को छू पाया यह तो इसे पढ़ने वाले ही तय कर पाएँगे तदपि मुझे उम्मीद है कि जितना भी प्रबुद्ध पाठक की हैसियत से आपने सोच रखा है यह उससे बेहतर ही मिलेगी...
● जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh +91- 90040 44110
The real link for the source story is given here :-
http://www.eastoftheweb.com/short-stories/UBooks/NigRos.shtml#top
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बुलबुल और गुलाब -1
Posted by Unknown in अंग्रेजी-हिंदी अनुवाद, कहानी अनुवाद, साहित्यिक अनुवाद on Wednesday, February 2, 2011
"बुलबुल और गुलाब"
● To be continue ... क्रमशः ... Part 2 & 3 के लिए...!!
भाग-2 ▬● http://indotrans1.blogspot.com/2011/02/2.html
भाग-3 ▬●
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● लेखक : Oscar Wilde
● अनुवादक : जोगेन्द्र सिंह (02 फरवरी 2011) +91- 90040 44110
● कृति : The Nightingale and the Rose "बुलबुल और गुलाब"
● अनुवाद : English to Hindi
● Note :-
● Dr. Dharmveer Bharti ने बहुत पहले “ऑस्कर वाईल्ड” की कहानियों का हिंदी में अनुवाद किया था...
● "Oscar Wilde" की लिखी उन्ही कहानियों में से एक "The Nightingale and the Rose" का कुछ भागों में अनुवाद मैंने भी किया है...
● दिल को छू जाने वाली इस कहानी के अनुवाद में मेरी पूरी कोशिश रही है कि मूल रचना के स्तर को गिराए बगैर अनुवादित रचना को एक बेहतर और आसान से साहित्यिक अंदाज़ में पुनः लिख कर प्रस्तुत करूँ...
किस स्तर को छू पाया यह तो इसे पढ़ने वाले ही तय कर पाएँगे तदपि मुझे उम्मीद है कि जितना भी प्रबुद्ध पाठक की हैसियत से आपने सोच रखा है यह उससे बेहतर ही मिलेगी...
● जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh +91- 90040 44110
The real link for the source story is given here :-
http://www.eastoftheweb.com/short-stories/UBooks/NigRos.shtml#top
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पत्र - सड़क समस्या पर
Posted by Unknown in Office Translation, अंग्रेजी-हिंदी अनुवाद, दफ्तरी पत्रनुवाद on Saturday, January 22, 2011
Mubai
December 21, 2010
The Editor
Indian Express
Mumbai
sir ,
I would like to bring to the notice of the authorities through the columns of your esteemed paper the poor condition of roads and streets of our locality.
The roads in Adarsh Nagar are in bad shape, having pits at every step and the pits leads to road accidents. During the rainy season they get filled with dirty water . Mosquitoes get place to breed which leads to out break of diseases like malaria . The general condition of our locality is in very bad shape. Nobody comes for sweeping , so one can see heaps of rubbish scattered all around.
It is high time the authorities wake up and take effective remedial steps.
Yours faithfully
XYZ
मुंबई
दिसंबर 21, 2010
श्रीमान ,
आदर्श नगर की सड़कें बुरी दशा में हैं , हर कदम पर गड्ढे बने हैं , अक्सर ये गड्ढे दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार होते हैं ! बारिश के मौसम में ये गंदले पानी से भर जाते हैं और तब मच्छरों को इसमें प्रजनन के लिए उचित परिस्थितीयां उपलब्ध होती हैं जोकि मलेरिया जैसी कई अन्य बीमारियों के प्रकोप का कारण बनती हैं ! हमारे इलाके की सामान्य स्थिति बड़ी ही बुरी दशा में है ! कोई भी झाड़ू लगाने नहीं आता है , इसलिए यहाँ चारों तरफ गन्दगी के ढेर बिखरे पड़े देखे जा सकते हैं ! यह चरम है और अब सम्बंधित अधिकारीयों को नींद से जाग कर असरदार सुधारात्मक कदम उठाने ही होंगे !
आपका भवदीय
अ ब स
आल्हाद से निर्वासन
Posted by Unknown in अंग्रेजी-हिंदी अनुवाद, कविता अनुवाद, दर्शन, साहित्यिक अनुवाद
exiles from delight
live coiled in shells of loneliness
until love leaves its high holy temple
and comes into our sight
to liberate us into life.
Love arrives
and in its train come ecstasies
old memories of pleasure
ancient histories of pain.
Yet if we are bold,
love strikes away the chains of fear
from our souls.
We are weaned from our timidity
In the flush of love's light
we dare be brave
And suddenly we see
that love costs all we are
and will ever be.
Yet it is only love
which sets us free.
● Maya Angelou
तब तक जब तक कि
अनुवाद ● जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh Thu, Dec 23, 2010 at 4:40 AM
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ईश्वर ही की सेवा
Posted by Unknown in अंग्रेजी-हिंदी अनुवाद, दर्शन, साहित्यिक अनुवाद
नोटिस - बाढ़ पीडितों की मदद
Posted by Unknown in Office Translation, अंग्रेजी-हिंदी अनुवाद, दफ्तरी पत्रनुवाद, नोटिस
The cultural society of our building is going to organize a charity show in an aid of the flood victims of Leh . The show will be held at 5 p.m. on Saturday , 17 December, 2010, in building campus. Mr. Jogendra Singh , The President of the building , has kindly consented to preside.
Children interested in participating in the show should give their namesto the undersigned in the morning latest by 16 December, 2010.
Secretary , Maulshree building
Worli
12 दिसंबर, 2010
पत्र - जलापूर्ति समस्या पर
Posted by Unknown in Office Translation, अंग्रेजी-हिंदी अनुवाद, दफ्तरी पत्रनुवाद
Dec 14, 2010
The Editor
The Hindustan Times
Mumbai
sir ,
Through the esteemed columns of your newspaper, I wish to draw the attention of the municipal authorities towards the inadequate water supply in our locality. It is really very unfortunate that the Municipal Corporation of Mumbai is rather unconcerned about the provision of civic amenities to the public in our area in particular. water supplies goes off even at peak hours in the morning when everyone has got to get ready for the day. All this causes a great inconvenience to everyone.
May we expect the water supply will soon be regulated?
Yours truly
xyz
संपादक महोदय
द हिंदुस्तान टाईम्स
मुंबई !
श्रीमान ,
आपके समाचारपत्र के सम्माननीय स्तंभ द्वारा, हमारे रहवास क्षेत्र विशेष में अपर्याप्त जल आपूर्ति की ओर महानगरपालिका के उच्चाधिकारियों का ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा ! यह देखना सच में दुर्भाग्यपूर्ण है कि निसंदेह ही हमारे क्षेत्र विशेष में मुंबई महानगरपालिका अपने जनता के प्रति प्रावधान वाली नागरी सुविधाओं के प्रति पूर्णतया उदासीन है ! सुबह के व्यततम घंटों के बीच भी पानी की आपूर्ति रुक जाया करती है , जबकि हर किसी को स्वयं को दिन भर के लिए तैयार करना होता है ! इस सब के कारण सभी के लिए एक बहुत बड़ी असुविधा नित प्रति उत्पन्न होती है !
भवदीय
( अ ब स )
शक्कर से मीठा
Posted by Unknown in अंग्रेजी-हिंदी अनुवाद, कहानी अनुवाद, साहित्यिक अनुवाद on Friday, January 21, 2011
A father one day asked his daughters , "what is the sweetest thing in the world?" "Sugar !" said the elder daughter. "salt", said the younger daughter.
It was a beautiful summer night , and as the pretty maiden sat singing sadly in the forest around her father's cottage, a young prince , who had lost the way while hunting the deer , heard her voice, and came to ask her the way. Then struck by her beauty , he fell in love with her, took her home to his beautiful palace
and married her.
The bride invited her father to the wedding feast, without telling him that she was his daughter. All the dishes were prepared without salt, and the guests began to complain as they ate the tasteless food. "There is no salt in the meat !" they said angrily.
"Ah!", said the bride's father . "salt is truly the sweetest thing in the world! But when my daughter said so , I turned her out of my house . If only I could see her again and tell her how sorry I am !"
Drawing the bridal veil aside from her face , the happy girl went to her father and kissed him. Now properly salted dishes were brought in and all the guests were satisfied.